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प्रथम अध्याय - शुभंगकरण प्रकरण

श्लोक-1. व्याख्यातं च कामसूत्रम्।।1।।


अर्थ- कामसूत्र के बारे में की गयी व्याख्या अब समाप्त होती है।

श्लोक-2. तत्रोक्तस्तु विधिभिरमिप्रेतमर्थमनधिगच्छत्रोनिषदिकमाचरेत्।।2।।

अर्थ-  कामसूत्र में बतायी गयी गयी विधियों से जिस किसी को इच्छित वस्तु की प्राप्ति न हो, वह औपनिषदिक अधिकरण में दिये गये उपायों का प्रयोग करें।

श्लोक-3. रूपं गुणो वयस्त्याग इति सुभंगकरणम्।।3।।

अर्थ- रूप, गुण, उम्र तथा त्याग- ये चार चीजें ऐसी होती हैं जो मनुष्य को सौभाग्यशाली बना देती हैं।

श्लोक-4. तगरकुष्ठतालीसपत्रकांनलेपनं सुभगंकरणम्।।4।।

अर्थ- तगर, कूट, तालीश पत्र का लेप लगाने से सौभाग्य और शारीरिक सौन्दर्यता में वृद्धि होती है।

श्लोक-5. एतैरेव सुपिष्टैर्वर्तिमालिप्याक्षतैलेन नरकपाले साधितमञ्जनं च।।5।।

अर्थ- उपर्युक्त दी गयी औषधियों को कूट-पीसकर, रूई की बत्ती में उस चूर्ण को लपेटकर बहेड़े के तेल में जलाकर मनुष्य की खोपड़ी में काजल पार कर लें।

श्लोक-6. पुनर्नवासहदेवीसारिवाकुरण्टोत्पलपत्रैश्च सिद्धं तैलमभ्यञजनम्।।6।।

अर्थ- पुनर्नवा (पथरचटा-गदहपुरैना), सहदेई, सारिवा (छितवन), अनंतमूल, कुरंट (लाल फूल का पिया बासां) तथा उत्पल (नीलकमल) इन सभी का तेल बनाकर लगाने से सौभाग्य और सुंदरता में वृद्धि होती है।

श्लोक-7. तद्युक्ता एव स्त्रजश्च।।7।।

अर्थ- उपरोक्त वस्तुओं की माला बनाकर पहनना।

श्लोक-8. पद्योत्पलनागकेराणां शोषितानां चूर्ण मधुघृताम्यामवलिह्य सुभगो भवति।।8।।

अर्थ- सूखे कमल, नीलकमल के फूल के तथा नागकेसर के चूर्ण को शहद तथा घी के साथ मिलाकर सेवन करने से सौभाग्य और सुंदरता में वृद्धि होती है।

श्लोक-9. तान्येव तगरतालीसतमालपत्रयुक्तान्यनुलिप्य।।9।।

अर्थ- इन वस्तुओं में तगर, तालीसपत्र, तमालपत्र मिलाकर सौभाग्य और सुंदरतावर्धक लेप भी तैयार किया जाता है।

श्लोक-10. मयूरस्याक्षि तरक्षोर्वा सुवर्णेनावलिप्य दक्षिणहस्तेन धारयेदिति सुभगंकरणम्।।10।।

अर्थ- मोर तथा चीते की आंखे सोने के ताबीज में भरकर दाहिने हाथ में बांधने से सुंदरता तथा सौभाग्य में वृद्धि होती है।

श्लोक-11. तथा बादरमणिं शंखमणिं च तथैव तेषु चाथर्वणान्योगान् गमयेत्।।11।।

अर्थ- इसी तरह बादरमणि तथा शंखमणि भी हैं, अथर्वेद में लिखे हुए इनके प्रयोग को समझ लेना चाहिए।

श्लोक-12. विद्यातंत्रच्च विद्यायोगात्प्राप्तयौवनां परिचारिकां स्वामी संवत्सरमात्रमन्यतो वारयेत्। ततो वारितां बालां वामात्वाललालसीभूतेषु गम्येषु योऽस्यै संघर्षेण बहु दद्यात्तस्मै विसृजेदिति सौभाग्यवर्धनम्।।12।।

अर्थ- विद्यातंत्र तथा विद्यायोग से यौवन प्राप्त नौकरानी को उसका मालिक साल भर तक दूसरे यौन संबंध बनाने से रक्षा करें। इस प्रकार से रक्षित परिचारिका को दूसरे लोग बाला समझकर उससे सेक्स करने तथा शादी करने की इच्छा प्रकट करेंगे। इस तरह की प्रतियोगिता में जो व्यक्ति सबसे अधिक धन दे, मालिक को उसी के साथ परिचारिका की शादी करनी चाहिए।

श्लोक-13. गणिका प्राप्तयौवनां स्वां दुहितरं तस्यां विज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभिनिमन्त्रय सारेण योऽस्या प्राप्तयौवनां स्वां दुहितरं तस्या विज्ञानशीलरूपानुरूप्येण तानभिनिमन्त्र्य सारेण योऽस्या इदमिदं च दद्यात्य पार्णिगृहणीयादिति संभाष्य रक्षयेदित।।13।।

अर्थ- गणिका की पुत्री जब युवा हो जाए तो उसकी मां को अपनी तरुणी पुत्री के समान सुंदर, रूप, गुण, शील तथा यौवन संपन्न युवकों को आमंत्रित करके यह घोषणा करे कि जो व्यक्ति कि जो युवक उसकी पुत्री को जरूरत की सभी वस्तुएं उपलब्ध करायेगा उसके साथ मैं अपनी पुत्री की शादी कर दूंगी। इस तरह अपनी लड़की की शादी करके गणिका उसके चरित्र को बचा सकती है।

श्लोक-14. सा च मातुरविदिता नाम नागरिकपुत्रैर्धनिभिरत्यर्थ प्रीतेत।।14।।

अर्थ- उस युवा वेश्या पुत्री को आये हुए प्रेमियों के साथ इस तरीके का प्रेम-व्यवहार प्रदर्शित करे मानो उसकी मां को इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है।

श्लोक-15. तेषां कलाग्रहणे गंधर्वशालायां भिक्षुकीभवने तत्र तत्र च संदर्शनयोगाः।।15।।

अर्थ-  धनी लोगों, राजाओं या उच्च परिवार के युवक जब कला की शिक्षा लेने के लिए वेश्या के घर आये तो उनसे मिलने का अवसर अपनी तरुणी पुत्री को दे तथा वह लड़की अपने घर में मिलने के बाद गंधर्व शाला, भिक्षुकों के घर जहां कहीं अवसर प्राप्त हो, उनसे भेंट प्रेम करती है।

श्लोक-16. तेषां यथोक्तदायिनां माता पाणिं ग्राहयेत्।।16।।

अर्थ- तरुणी वेश्या पुत्री का मां जिन चीजों की मांग करती है तथा जिससे वे वस्तुएं प्राप्त हों, उसी के साथ अपनी पुत्री की शादी करें।

श्लोक-17. तावदर्थमलभमाना तु स्वेनाप्येकदेशेन दुहित्र एतद्दत्तमनेनेति ख्यापयेत्।।17।।

अर्थ- घोषित चीजें यदि निश्चित मात्रा में कोई न दे सके तो अपने ही धन को दिखाकर वेश्यापुत्री की मां कहे कि यह पूरा धन मेरी बेटी को इसी व्यक्ति ने दिया है।

श्लोक-18. ऊढाया वा कन्याभावं विमोचयेत्।।18।।

अर्थ- वेश्या को चाहिए कि जब उसकी कन्या बड़ी हो जाए तब उपर्युक्त विधि से युवकों को फंसाकर उनसे अपनी तरुणी कन्या को सेक्स कराकर उसका कौमार्य भंग कराना चाहिए।

श्लोक-19. प्रच्छन्न वा तैः संयोज्य स्वयमजानती भूत्वा ततो विदितेष्वेतं धर्मस्थेषु निवेदयेत्।।19।।

अर्थ- प्रच्छन्न रूप से उन तरुणों से मिलकर उनके प्रेम की खबर राज्याधिकारी तक पहुंचा दे तथा फिर वह मां उन प्रेमियों के खिलाफ अदालत में फरियाद भी करती है।

श्लोक-20. सख्यैव तु दास्या वा मोचितकन्याभावां सुगृहातकामसूत्रामाभ्यासिकेषु योगेषु प्रतिष्ठितां प्रतिष्ठते वयसि सौभाग्ये च दुहितरमवसृजंति गणिका इति प्राच्योपचाराः।।20।।

अर्थ- सबसे पहले प्रदेश की कन्याएं अपनी लड़की की सहेली तथा दासी के द्वारा लड़की का कौमार्य भंग कराकर सेक्स क्रिया के रहस्यों तथा योगों का अभ्यास कराती हैं। उन अभ्यासों, कलाओं में पूरी कुशलता प्राप्त कर लेने पर वेश्या की लड़की का भाग्य युवावस्था के साथ ही चमक जाता है। तब वे अपनी पुत्री को वेश्याचरित्र में निपुण जानकर आजाद कर देती हैं।

श्लोक-21. पाणिग्रहश्च संवत्सरमव्यभिचार्यस्ततो यथा कामिनी स्यात्।।21।।

अर्थ- जिस व्यक्ति ने वेश्या की पुत्री के साथ शादी की है, उसके साथ वेश्या-पुत्री को एक साल तक रहना चाहिए। इसके बाद जहां वह चाहे या जो उससे सेक्स करने की इच्छा करे वहां उसके साथ वह स्वेच्छा से सेक्स करे।

श्लोक-22. ऊर्ध्वमपि संवत्सरात्परिणीतेन निमन्त्र्यमाणा लाभामप्युत्सृज्य तां रात्रिं तस्यागच्छेदिति वेश्यायाः पाणिग्रहणविधिः सौभाग्यवर्धनं।।22।।

अर्थ- एक साल के बाद जब विवाहित वेश्या-पुत्री का पति बुलाए तो वह अर्थलाभ को छोड़कर उस रात उसके साथ सेक्स करने के लिए जाए। वेश्या की शादी तथा सौभाग्यवर्धन के बारे में किया गया उल्लेख यही समाप्त होता है।

श्लोक-23. एतेन रंगोपजीविनां कन्या व्याख्याताः।।23।।

अर्थ- थियेटर पर डांस और नाटकों में काम करने वाली लड़कियों की शादी इसी प्रकार से होती है।

श्लोक-24. तस्मै तु तां दद्युर्य एषां तूर्ये विशिष्टमुपकुर्यात्। इति सुभंगकरणम्।।24।।

अर्थ- लेकिन अभिनय करने वाली तथा नाचने वाली की पुत्री की शादी उसी के साथ की जानी चाहिए जिसकी रुचि उसके कैरियर को आगे ले जाने में हो।

श्लोक-25. धत्रूरकमरिचपिप्पलीचूर्णैर्मधुमिश्रैर्लिप्तलिंगस्य सम्प्रयोगो वशीकरणम्।।25।।

अर्थ- धतूरा, कालीमिर्च तथा छोटी पीपल के चूर्ण में शहद मिलाकर लिंग पर लेप करके जिस स्त्री से सेक्स किया जाए, वह वशीभूत हो जाती है।

श्लोक-26. वतोद्भान्तपत्रं मृतकनिर्माल्यं मयूरास्थिचू्र्णावचूर्ण वशीकरणम्।।26।।

अर्थ- हवा में उड़े हुए पत्ते, शव पर चढ़ाया गया चंदन, मोर की हड्डी के चूर्ण का लेप बनाकर लिंग पर लेप करें तथा सेक्स करें तो वह स्त्री वशीभूत हो जाती है।

श्लोक-27. स्वयं मृताया मण्डलकारिकायाश्चूर्णं मधुसंयुक्तं सहामलकैः स्त्रान वशीकरणम्।।27।।

अर्थ- अपने आप मरे हुए गिद्ध के चूर्ण में शहद मिलाकर आंवले के रस के साथ लेप लगाकर स्नान करें। इसके बाद सेक्स करने से स्त्री वश में हो जाती है।

श्लोक-28. वज्रस्नुहीगण्डकानि खण्डशः कृतानि मनःशिलागंधपाषाणचूर्णनाभ्यज्य सप्तकृत्वः शोषितानि चूर्णयित्वा मधुना लिप्त लिंगस्य संप्रोयोगो वशीकरणम्।।28।।

अर्थ- थूहर की गांठे टुकड़े-टुकड़े करके उसमें मैनसिल तथा गंधक को लपेटकर सात बार सुखा लें। फिर उसका चूर्ण बनाकर शहद के साथ लिंग पर लेप करके जिस स्त्री के साथ सेक्स करेंगे। वह वशीभूत हो जाती है।

श्लोक-29. एतेनैव रात्रौ धूमं कृत्वा तद्धमतिरस्कृतं सौवर्णं चन्द्रमसं दर्शयति।।29।।

अर्थ- उपर्युक्त चीजों के चूर्ण को रात के समय धुंआ कर देने पर धुंएं से ढका हुआ चांद सोने के समान दिखाई देता है।

श्लोक-30. एतेरैव चूर्णितैर्वानरपुरीषमिश्रितैर्या कन्यामकिरत्साऽन्यस्मै न दीयते।।30।।

अर्थ- अथवा इन्हीं वस्तुओं के चूर्ण में मनुष्य या बंदर की विष्ठा (मल) मिलाकर जिस लड़की के ऊपर छिड़क देंगे। वह लड़की वशीभूत हो जाती है।

श्लोक-31. वचागण्डकानि सहकारतैललिप्तानि शिंशपावृक्षस्कन्धमुत्कीर्य षण्मासं निदध्यात् ततः षडभिर्मासैरपनीतानि देवकांतमनुलेपनं वशीकरणं चेत्याचक्षते।।31।।

अर्थ- वच की गांठों को आम के तेल से गीला करके, शीशम के तने खोदकर उसमें 6 महीने तक बंद रखें। 6 महीने बाद फिर उसका लेप शरीर में लगायें तो स्त्री वशीभूत हो जाती है। इस लेप को देवकांत कहा जाता है। इस लेप को लगाने से उसके शरीर की चमक बढ़ जाती है।

श्लोक-32. तथा खदिरसारजानि शकलानि तनूनि यं वृक्षमुत्कीर्य षण्मासं निदघ्यात्तत्पुष्पगंधानि भवन्ति गंधर्वकान्तमनुलेपनं वशीकरणं चेत्याचक्षते।।32।।

अर्थ- इसी प्रकार खादिरसार (कत्था) की लकड़ी के टुकड़ों को पतला करके आम के तेल से भिगोकर जिस पेड़ के तने में 6 महीने तक गाड़े रखें तथा फिर उसका लेप करें तो उसी पेड़ के समान सुगंध शरीर में व्याप्त रहती है। इस वशीकरण अवलेप को गंधर्वकांत अनुलेप के नाम से जाना जाता है।

श्लोक-33. प्रियंगवस्तगरमिश्राः सहकारतैलदिग्धा नागवृक्षमुत्कीर्य षण्मासं निहिता नागकांतमनुलेपनं वशीकरणमित्याचक्षते।।33।।

अर्थ- तगर तथा काकुन (कांगुनी) को एक में मिलाकर आम के तेल से भिगोकर उपरोक्त तरीके से नागकेसर के तने में गाड़कर, 6 महीने बाद उसका लेप करने से स्त्री वशीभूत हो जाती है। इस लेप को नागकांत लेप के नाम से जाना जाता है।

श्लोक-34. उष्ट्रास्थि भृंगराजरसेन भावितं दग्धमञ्जनं नलिकायां निहितमुष्ट्रास्थिशलाकयैव स्त्रोतोऽञ्जनसहितं पुण्यं चक्षुष्यं वशीकरणं चेत्याचक्षते।।34।।

अर्थ- ऊंट की हड्डियां भृंगराज के रस में उबालकर सुरमा के साथ पुटष्पाक द्वारा जलाकर ऊंट की हड्डी से बनी हुई सुरमेदानी में उस सुरमा को रखें, तथा ऊंट की सलाई से ही आंखों में लगाएं। यह सुरमा आंखों के लिए बहुत लाभकारी होता है। इसके प्रयोग से स्त्रियां वश में हो जाती हैं।

श्लोक-35. एतेन श्येनभासमयूरास्थिमयान्यञ्जनानि व्याख्यातानि।।35।।

अर्थ- इसी प्रकार श्येन, भास, मयूर, पक्षियों की हड्डियों से भी सुरमा बनाया जा सकता है।

श्लोक-36. उश्चटाकंदश्चव्या यष्टीमधुकं च सशर्करेण पयसा पीत्वा वृषीभवति।।36।।

अर्थ- बीजबंद, सफेद मूसली, मुलहठी के चूर्ण में शहद व शक्कर मिलाकर दूध के साथ पीने से शक्ति प्राप्त होती है तथा बल और वीर्य की वृद्धि होती है।

श्लोक-37. मेषवस्तुमुष्कसिद्धस्य पयसः सशर्करस्य पानं वृषत्वयोग।।37।।

अर्थ- भेड़ या बकरा के अंडकोषों को दूध में पकाकर, चीनी डालकर पीने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है।

श्लोक-38. तथा विदार्य़ाः क्षीरकायाः स्वयगुप्तायाश्च क्षीरेण पानम्।।38।।

अर्थ- विदारीकंद, वंशलोचन तथा केवांच के बीजों का चूर्ण बनाकर दूध के साथ पीने से बल-वीर्य की वृद्धि होती है।

श्लोक-39. तथा प्रियालबीजानां मोरटाविदार्योश्च क्षीरणैव।।39।।

अर्थ- चिरौंजी, मुरहरी, दुधिया, बिदारीकंद का चूर्ण दूध के साथ पीने से बलवीर्य की वृद्धि होती है और शरीर शक्तिशाली होता है।

श्लोक-40. श्रंगाटककसेरुकामधूलिकानि क्षीरकाकोल्या सह पिष्टानि सशर्करेण पयसा घृतेन मंदाग्निनोत्करिकां पक्तवा यावदर्थं भक्षितवानन्ताः स्त्रियो गच्छीतीत्याचार्याः प्रचक्षते।।40।।

अर्थ- आचार्यों का मानना है कि सिंघाड़ा, कसेरू तथा महुआ के फूलों को क्षीरकाकोली के साथ पीसकर उसमें दूध तथा शक्कर मिला दें। फिर घी में धीमी आंच से हलवा बनाकर प्रतिदिन सेवन करने से शरीर में इतनी अधिक ताकत बढ़ती है कि वह व्यक्ति सैकड़ों स्त्री के साथ सेक्स कर सकता है।

श्लोक-41. माषकमलिनीं पयसा धौतामुष्णेन घृतेन मृदकृत्योदधतां वृद्धवत्सायाः गोः पयः पायसं मधुसर्पिर्भ्यामशित्वाऽनन्ताः स्त्रियो गच्छतीत्याचार्याः प्रचक्षते।।41।।

अर्थ- आचार्यों का मानना है कि दूध में भिगोई हुई उड़द की दाल की भूसी को पानी से धोकर साफ कर लें, फिर उसे पीसकर घी में भून लें। जब यह भूनकर लाल हो जाए तो बकायन, गाय या बकरी का दूध मिलाकर हलवा बना लें। इसके बाद विषम मात्रा में शहद तथा घी छोड़कर रोजाना खाने से असंख्य औरतों से सेक्स करने की शक्ति प्राप्त होती है।

श्लोक-42. विदारी स्वयंगुप्ता शर्करा मधुसजर्पिर्भ्या गोधूमचूर्णेन पोलिकां कृत्वा यावदर्थं भ

अर्थ- आचार्यों के अनुसार विदारीकंद, कौंच के बीज के चूर्ण में गेहूं का आटा, शहद तथा शक्कर मिलाकर घी में डालकर पकौड़ियां बना लें। इन पकौड़ियों को प्रतिदिन खाने से इतना अधिक बल-वीर्य बढ़ता है कि एक व्यक्ति सैकड़ों स्त्रियों के साथ सेक्स कर सकता है।

श्लोक-43. चटकाण्डरसभावितैस्तणडुलैः पायसं सिद्धं मधुसर्पिभ्या पावितं यावदर्थमिति समानं पूर्वेण।।43।।

अर्थ- गोरैया चिड़िया के अंडों के रस को चावलों के साथ उबालकर उसकी खीर दूध के साथ बनायें। इस खीर को घी तथा शहद के साथ खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक वृद्धि होती है।

श्लोक-44. चटकाण्डरसभावितानपगतत्वचस्तलाञ् श्रृंगाटककसेरुस्वयंगुप्ताफलानि गोधूममाषचूर्णैः सशर्करेण पायसा सर्पिया च पक्कं संयावं यावदर्थ प्राशितवानिति समानं पूर्वेण।।44।।

अर्थ- काले तिलों को भिगोकर उनका छिलका निकाल लें। इसके बाद इन छिलकों को गोरैया के अंडों के रस में उबाल लें, फिर सिंघाड़ा, कसेरू तथा केवांच के बीज का चूर्ण कर लें, और उड़द की पीठी, गेहूं का आटा इन सभी को एक में मिलाकर घी में भूनकर दूध-शक्कर मिलाकर लस्सी बना लें। इस लस्सी को प्रतिदिन खाने से सेक्स क्षमता में बहुत अधिक वृद्धि होती है।

श्लोक-45. सर्पिषो मधुनः शर्कराया मधुकस्य च द्वे द्वे पले मधुरसायाः कर्षः प्रस्थं पयसं इति षडंगम्मृतं मेध्यं वृश्यमायुष्यं युक्तरसमित्याचार्याः प्रचक्षते।।45।।

अर्थ- आचार्यों का मानना है कि शहद, शक्कर तथा महुआ के दो फूल, मुलहठी, कर्ष, दूध इन सभी को एक साथ मिलाकर रख लें। इस मिश्रण के सेवन से आयु में वृद्धि होती है। यह बाजीकरण तथा आयुवर्धक है। इस मिश्रण को युक्तरस के नाम से जाना जाता है।

श्लोक-46. शतावरीश्चदंष्ट्रागुडकषाये पिप्पलीमधुकल्के गोक्षीरच्छागघृते पक्के तस्य पुष्यारम्भेणान्वहं प्राशनं मेध्यं वृष्यमायुष्यं युक्तरसमित्याचार्यः प्रचक्षते।।46।।

अर्थ- सतावर, पहाड़ी गोखरू इन दोनों वस्तुओं के बारीक चूर्ण में छोटी पीपल और शहद की लुगदी मिला लें। फिर इसे गाय के घी में भूनकर दूध में पका लें। इसे पुष्यनक्षत्र से शुरू करके नियमित रूप से चाटने से बुद्धि तथा आयु में वृद्धि होती है। यह बाजीकारण भी होता है। इसे घी युक्त रस के नाम से जाना जाता है।

श्लोक-47. शतावर्याःश्र्वगृदंषट्रायाः श्रीपर्णीफलानां च क्षुण्णानां चतुर्गुणितजलेन पाक आप्रकृत्यवस्थानात् तस्य पुष्यारम्भेण प्रातः प्राशनं मेध्यं वृष्ण्मायुष्यं युक्तरसमित्याचार्याः प्रचछते।।47।।

अर्थ- शतावर, पहाड़ी गोखरू, श्रीपर्णी (कसेरू) के फल इनको यवकूट करके जितनी दवा हो उससे चौगुने पानी में इन दवाओं को छोड़कर आग पर चढ़ा दें। जब पानी पूरी तरह से जल जाए तो उसे आग पर से उतार कर रख लें। इसे पुष्यनक्षत्र से शुरू करके नियमित रूप से चाटने से बुद्धि तथा आयु में वृद्धि होती है। यह बाजीकारण भी होता है। इसे युक्तरस के नाम से जाना जाता है।

श्लोक-48. श्र्वदंष्ट्राचूर्णसमन्वितं तत्समेव यवचूर्णं प्रातरुत्थाय द्विपलकमनुदिनं प्राश्रीयान्मेध्यं वृष्यं युक्तरसमित्याचार्याः प्रचक्षते।।48।।

अर्थ- पहाड़ी गोखरू का चूर्ण तथा जौ का आटा बराबर मात्रा में लेकर दोनों को मिला लें। इसे सुबह-शाम दोनों समय सेवन करने से मेधाशक्ति बढ़ती है, शारीरिक शक्ति, चमक तथा आयु में भी वृद्धि होती है। इसे भी यक्तरस कहा जाता है।

श्लोक-49. आयुर्वेदाच्च विद्यातंत्रेभ्य एव च। आप्तेभ्यश्रावबोद्धव्या योगा ये प्रीतिकारकः।।49।।

अर्थ- उपर्युक्त बाजीकरण योगों से बताकर वात्स्यायन कहते हैं कि इन योगों के अतिरिक्त आयुर्वेद, वेद तथा अन्य शास्त्र, अधिकारी, विद्वानों, अनुभवी वैद्यों से रागरति बढ़ाने वाले भोगों को सीखना चाहिए।

श्लोक-50. न प्रयुञ्जीत संदिग्धात्र शरीरात्ययावहान्। न जीवघातसंबद्धात्राशुचिद्रव्यसंयुतान्।।50

अर्थ- संदिग्ध शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले, जीवों को मारकर बनाये जाने वाले योग या जिनमें अपवित्र चीजें मिलायी जाएं- ऐसे बाजीकारक योगों का भी प्रयोग नहीं करना चाहिए।

श्लोक-51. तपोयुक्तः प्रयुञ्जीत शिष्टैरनुगतान् विधीन्। ब्राह्मणैश्च सुहृद्भिश्च मंगलैरभिनंदितान्।।51।।

अर्थ- सिर्फ उन्हीं औषधियों को सेवन सावधानीपूर्वक किया जाना चाहिए जो शिष्ट लोगों के प्रयोग में आती हों, तथा शुभचिंतक ब्राह्मण, विद्वान तथा दोस्त लोग उसकी तारीफ लिखें। वशीकरण योग 61वां प्रकरण समाप्त होता है।

            कामसूत्र की दृष्टि से तंत्र तथा आवाप इन दो भागों में बांटा गया है। वात्स्यायन ने पहले अधिकरण में यह जानकारी दी है कि यदि आप तंत्र संप्रयोग तथा अंग सम्प्रयोग को प्राप्त करने में और रोगोत्पादक उपाय आलिंगन चुंबन से स्त्री में रति भाव उत्पन्न करने में असफल हों. तो इस मौके पर औपनिषदिक प्रकरण में बताई गयी विधियों का उपयोग किया जाए।

            इस सातवें अधिकरण में दो अध्याय दिये गये हैं। पहले अध्याय में सौन्दर्य वृद्धि के उपाय, वशीकरण के उपयोग तथा बाजीकरण के प्रयोगों की जानकारी दी गयी है। धर्म, अर्थ तथा काम- इस त्रिवर्ग की सिद्धि ही मानव जीवन का लक्ष्य है। इनकी जब तक तक प्राप्त नहीं होती, तब तक चरम लक्ष्य-मोक्ष कभी भी प्राप्त नहीं किया जा सकता है। कामसूत्र की रचना का मूल उद्देश्य इसी लक्ष्य पर आधारित है।

            इस अध्याय में सौभाग्यवृद्धि, आयुवृद्धि, स्त्री-वशीकरण तथा बाजीकरण के जो प्रयोग दिये गये हैं वे आयुर्वेदिक तथा तांत्रिक प्रयोग हैं। शास्त्र का विषय होने के कारण से वात्स्यायन ने इन प्रयोगों को स्थान दिया है। न कि कामियों की सेक्स शक्ति अधिक बढ़ाने, घोड़ा बनने अथवा दूसरों की बहू-बेटियों को वशीभूत करने के लिए। कभी धर्म-संकट आ जाए, आत्मसम्मान की रक्षा का प्रश्न उपस्थित हो जाए तो इन प्रयोगों को व्यवहार में लाना आवश्यक होता है। लेकिन विशेषज्ञों, अनुभवी लोगों से पूछकर, उनसे समझकर ही प्रयोग करना सही रहता है। वात्स्यायन ने इसी कारण से अंत में स्पष्ट उपदेश करते हुए कहा है कि आयुर्वेदिक ग्रंथों से, वैदिक ग्रंथों से, अन्य शास्त्रों से, तंत्रग्रंथों से तथा अनुभवी और योग्य विद्वानों से समझकर ही इन योगों का प्रयोग करना चाहिए। अन्यथा इसका बुरा परिणाम भी हो सकता है जैसे- एक बाजीकारक प्रयोग के अंतर्गत कामसूत्रकार ने लिखा है कि-

सर्पिषो मधुना शर्कराया मधूकस्य च द्वे द्वे पले।

            यहां पर घी तथा शहद दोनों को समान मात्रा में खाने को बताया गया है। आयुर्वेद का सिद्धांत है कि घी तथा शहद को यदि बिल्कुल समान मात्रा में ले तो यह विष बन जाती है। किताबों में लिखे गये मंत्रों तथा उनकी विधियों को पढ़कर उन्हें सिद्ध करना अज्ञानता होती है। किसी जानकार से समझकर ही प्रयोग करना चाहिए।

इति श्री वात्स्यायनीये कामसूत्रे औपनिषदिके सप्तमेऽधिकरणे सुभंगकरणं वशीकरणं वृष्ययोगाः प्रथमोऽध्यायः।
प्रथम अध्याय - शुभंगकरण प्रकरण प्रथम अध्याय - शुभंगकरण प्रकरण Reviewed by Admin on 10:15 AM Rating: 5

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