चतुर्थ अध्याय : नखरदन जातिप्रकरण
श्लोक (1)- रागवृद्धौ संघर्षात्मकं नखविलेखनम्।।
नखच्छेद
अर्थ : उत्तेजना के अधिक बढ़ जाने पर स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के शरीर पर नाखूनों को गढ़ाते हैं।
श्लोक (2)- तस्य प्रथमसमागमे प्रवासप्रत्यागमने प्रवासगमने क्रुद्धप्रसन्नायां मत्त्यां च प्रयोगः। न नित्यमचण्डवेगयोः।।
अर्थ : अपने अंदर की काम-उत्तेजना को स्त्री को दिखाने के लिए मन्दवेगी (संभोग क्रिया में पूरी तरह से जो पुरुष संपन्न नहीं होता) पुरुष कहीं दूसरे देश आदि से वापस आने के बाद, सुहागरात के दिन, स्त्री के गुस्से में आने के बाद, काम से खाली होने के बाद या खुश होने के बाद नाखूनों से सहलाते और खुजलाते हैं।
श्लोक (3)- तथा दशनच्छेद्यस्य सात्म्यवशाद्धा।।
नखच्छेद के भेद :
अर्थ- जिस तरह से संभोग क्रिया के समय नाखूनों से सहभागी के शरीर पर हमला किया जाता है वैसी ही क्रिया दांतों से भी की जा सकती है।
श्लोक (4) – तदाच्छुरितकमर्धचन्द्रो मंडल रेखा व्याघ्रनखं मयूरपदकं शशप्लुतकमत्पलपत्रकमिति रूपतोऽष्टविकल्पम्।।
अर्थ : निशानों के अनुसार नखच्छेद 8 प्रकार के होते हैं-
• आच्छुरितक।
• अर्धचन्द्र।
• मंडल।
• रेखा।
• व्याघ्रनख।
• मयूरपदक।
• शशप्लुतक।
• उत्पलपत्रक।
श्लोक (5)- कक्षौ स्तनौ गलः पृष्ठं जघनमुरू च स्थानानि।।
नखच्छेद स्थान :
अर्थ : दोनों बगलों में, दोनों स्तन, गला, पीठ, जांघों और जांघों के जोड़ नाखून गढ़ाने के स्थान होते हैं।
श्लोक (6)- प्रवृत्तरतिचक्राणां न स्थानमस्थानं वा विद्यत इति सुवर्णनाभः।।
अर्थ- सुवर्णनाभ के विचार :
कोई भी स्त्री और पुरुष जब संभोग क्रिया में लीन हो जाते हैं तो उन्हें इस बात का कोई ध्यान नहीं रह जाता कि सहभागी के शरीर में किस स्थान पर नाखूनों को गड़ाना चाहिए या किस स्थान पर नहीं गड़ाना चाहिए।
श्लोक (7)- तत्र सव्यहस्तानि प्रत्यग्रशिखराणि द्वित्रिशिखराणि चण्डवेगयोर्नखानि स्युः।।
अर्थ : ऐसे व्यक्ति जिनमें काम-उत्तेजना बहुत ज्यादा होती है वह अपने बाएं हाथ के नाखूनों को नुकीले तथा लंबे आकार के रखते हैं। कोई तो तो अपने हर नाखून में 2-3 नोकें रखता है।
श्लोक (8)- अनुगतराजि सममुज्जवलममलिनमविपाटितं विवर्धिष्णु मृदुस्त्रिग्धदर्शनमिति नखगुणा।।
अर्थ- ऩाखूनों के 8 गुण :
• नाखून के बीच में जो लाइने होती हैं वह नाखून के रंग की ही होनी चाहिए।
• नाखून हमेशा चमकदार होने चाहिए।
• नाखूनों को साफ करके रखना चाहिए।
• सारे नाखून एक ही आकार के होने चाहिए न तो कोई ऊंचा-नीचा होना चाहिए और न ही कोई टेढ़ा-मेढ़ा होना चाहिए।
• नाखून फटे हुए नहीं चाहिए।
• नाखून बढ़ने वाले होने चाहिए।
• नाखून हमेशा मुलायम होने चाहिए।
• नाखून देखने में चिकने होने चाहिए।
श्लोक (9)- दीर्घाणि हस्तशोभीन्यालोके च योषितां चित्तग्राहीणि गौडानां नखानि स्युः।।
अर्थ : एक गौड़ नाम का देश है जहां के लोगों के नाखून लंबे होते हैं और यही लंबे नाखून उनके हाथों की शोभा माने जाते हैं। इन नाखूनों को देखकर ही वहां की युवतियां वहां के युवकों की ओर आकर्षित होती हैं।
श्लोक (10)- मध्यमान्युभयभाञ्ञि महाराष्ट्रकाणामिति।।
अर्थ : महाराष्ट्र में रहने वाले निवासियों के नाखून मध्यम आकार के होते हैं।
श्लोक (11)- तैः सुनियमितैर्हनुदेशे स्तनयोरधरे वा लघुकरणमनद्रतलेखं स्पर्शमात्रजननाद्रोमाञ्ञकरमंते संनिपातवर्धमानशब्दमाच्छुरितकम्।।
अर्थ- नखच्छेद के लक्षण :
अपने दोनों हाथों की उंगलियों को एकसाथ मिलाकर गालों, स्तनों और होंठों पर इतने हल्के से स्पर्श करना चाहिए कि शरीर में उत्तेजना सी भर जाए। इसके बाद अंगूठे से दूसरे नाखूनों का खुटका मारकर स्पर्श करना आच्छुरितक नखच्छेद कहलाता है।
श्लोक (12)- प्रयोज्यायां च तस्याग्ङसंवाहने शिरसः कण्डूयने पिटकभेदने व्याकुलीकरणे भीषणेन प्रयोगः।।
अर्थ- आच्छुरितक का प्रयोग :
जब स्त्री पुरुष के शरीर को दबा रही हो, सिर खुजला रही हो, मुहांसों को फोड़ रही हो या जब स्त्री के शरीर में इतनी उत्तेजना भरनी हो कि वह बेचैन हो जाए तो उस समय आच्छुरितक नखच्देद्य का इस्तेमाल करना चाहिए।
श्लोक (13)- ह्यस्वानि कर्मसहिष्णूनि विकल्पयोजनासु च स्वेच्छापातीनि दाक्षिणात्यानाम्।।
अर्थ : दक्षिण देश में रहने वाले लोग अक्सर छोटे नाखून रखते हैं। उनके ऐसे नाखून हर तरह के नखच्छेद्य कर सकते हैं। ऐसे नाखून न तो टूटते है और न ही मुड़ते हैं।
श्लोक (14)- ग्रीवायां स्तनपृष्ठे च वक्रो नखपदनिवेशोऽर्धचन्द्रकः।।
अर्थ- अर्धचन्द्र :
संभोग क्रिया के जब स्तनों तथा गर्दन पर अर्धचन्द्र की तरह नाखूनों को गढ़ाकर निशान बनाया जाता है तो उसे अर्धचन्द्र नखच्छेद्य कहा जाता है।
श्लोक (15)- तावैव द्वौ परस्पराभिमुखौ मण्डलम्।।
अर्थ- मंडल :
जब दो अर्धचन्द्रों को एक-दूसरे के आमने-सामने पास ही पास किया जाता है तो उसे मण्डल नखच्छेद कहते हैं।
श्लोक (16)- नाभिमूलककुन्दरवंक्षणेषु तस्य प्रयोगः।।
अर्थ- प्रयोग :
संभोग क्रिया के समय सहभागी के पेड़ू में ककुंदर और जांघों के जोड़ो में मण्डल नाम का गोल नखक्षत करना चाहिए।
श्लोक (17)- सर्वस्थानेषु नातिदीर्घा लेखा।।
अर्थ- रेखा :
संभोग क्रिया के समय सहभागी के शरीर के किसी भी अंग में अपने नाखूनों के द्वारा रेखा सी बनाई जा सकती है लेकिन कुछ ज्यादा बड़ी नहीं।
श्लोक (18)- सैवा वक्रा व्याघ्रनखकमास्तनमुखम्।।
अर्थ : अगर उस रेखा को थोड़ा सा टेढ़ा खींच करके स्तन के या मुंह के पास खींची जाए तो उसे व्याघ्ररेखा कहा जाता है।
श्लोक (19)- पञ्ञभिरभिमुखैलेखा चुचुकाभिमुखी मयूरपदकम्।।
अर्थ- मयूरपदक :
संभोग क्रिया के समय जब स्त्री के स्तनों के निप्पलों को हाथ की पांचों उंगलियों से पकड़कर जब अपनी तरफ खींचा जाता है तो उस समय जो रेखांए बनती है उन्हें मयूरपदक कहा जाता है।
श्लोक (20)- तत्संप्रयोगश्र्लाघायाः स्तनचूचुके संनिकृष्टानि पञ्ञनखपदानि शशप्लुतकम्।।
अर्थ- शशप्लुतक :
संभोग क्रिया के समय जब स्त्री मयूर पदक नखक्षत की इच्छा करती है तो उस समय उसके स्तनों के निप्पलों को पांचों उंगलियों से दबाकर जो निशान बना दिया जाता है तो उसे शशलुतक कहते हैं।
श्लोक (21)- स्तनपृष्ठे मेखालापथे चोत्पलपत्राकृतीत्युपलपत्रकम्।।
अर्थ- उत्पल पत्रक :
संभोग क्रिया के समय जब स्त्री के स्तन और कमर पर कमल की पंखुड़ियों की तरह नाखूनों से निशान बनाए जाते हैं उसे उत्पलपत्रक कहा जाता है।
श्लोक (22)- ऊर्वाः स्तनपृष्ठे च प्रवासं गच्छतः स्मारणीयके संहताश्र्चतस्त्रस्तिस्त्रो वा लेखाः। इति नखकर्माणि।।
अर्थ : जिस समय पुरुष अपनी पत्नी से दूर जा रहा होता है तो वह स्त्री के स्तनों तथा जांघों के जोड़ों पर अपने नाखूनों से निशान बना देता है ताकि स्त्री को उन निशानों को देखकर उसकी याद आती रहे।
श्लोक (23)- आकृतिविकारयुक्तानि चान्यान्यपि कुर्वीत।।
अर्थ : इनके अलावा स्त्री के शरीर पर दूसरे कई तरह के निशान बनाए जा सकते हैं।
श्लोक (24)- विकल्पानामनन्तत्वादानन्तयाच्च कौशलविधेरभ्यासस्य च सर्वगामित्वाद्रागात्मकत्वाच्छेद्यस्य प्रकारन् कोऽभिसमीक्षितुमर्हतीत्याचार्याः।।
अर्थ : कामशास्त्र की रचना करने वाले लेखकों ने यह कहा है कि अभ्यास तथा कौशल से व्यापकता के कारण नखक्षत के अलग-अलग भेदों की कोई गिनती नहीं की जा सकती है। इसके अलावा काम-उत्तेजना में भरकर व्यक्ति नखक्षत करने में लीन हो जाता है। इस अवस्था में उसे नखक्षत करने की कला और नखक्षत के भेदों का ध्यान नहीं रहता है।
श्लोक (25)- भवित हि रागेऽपि चित्रापेक्षा। वैचित्र्याच्च परस्परं रागो जनयित्वयः। वैचक्षणययुक्ताश्र्च गणिकास्तत्कामिनश्र्च किं पुनरिहेति वात्यायनः।।
अर्थ : इस बताए हुए कथन के मुताबिक आचार्य वात्स्यायन का कहना है कि उत्तेजित अवस्था में कई तरह की चित्र-विचित्र क्रियाएं करने की इच्छा बनी ही रहती है। जो लोग संभोग करने की बहुत सी कलाओं में निपुण होते हैं उनसे संभोग करने की इच्छा ऐसी स्त्रियां भी रखती हैं जो इस कला में बहुत ही ज्यादा निपुण होती हैं और ऐसी ही स्त्रियों की इच्छा इस कला में निपुण पुरुष भी किया करते हैं।
श्लोक (26)- न तु परपरिगृहीतास्वेवं। प्रच्छेन्नेषु प्रदेशेषु तासामनुस्मरणार्थ रागवर्धनाच्च विशेषान्दर्शयेत्।।
अर्थ : पराई स्त्रियों के साथ नखक्षत (नाखूनों से काटना), दन्तक्षत (दांतों से काटना) आदि नहीं करना चाहिए बल्कि यादगार के लिए तथा उत्तेजना को बढ़ाने के लिए उनके गुप्त स्थानों में नाखूनों के द्वारा निशान बना देने चाहिए।
श्लोक (27)- नखक्षतानि पश्यन्त्या गृढास्थानेषु योषितः चिरोत्सृटाप्यभिनवा प्रीतिर्भवति पेशला।।
अर्थ : स्त्री जब अपने गुप्त अंगों में नाखूनों के निशान देखती है तो उसे अपने पुराने प्रेमी की याद आ जाती है।
श्लोक (28)- चिरोत्सृष्टेषु रागेषु प्रीतिर्गच्छेत्पराभवभ्। रागायतनसंस्मारि यदि न स्यान्नखक्षतम्।।
अर्थ : स्त्री के शरीर पर अगर रूप, गुण, यौवन की याद दिलाने वाले पुरुष के नाखूनों के निशान नहीं होते हैं तो इसके कारण उसका काफी दिनों से छूटा हुआ प्यार बिल्कुल ही समाप्त हो जाता है।
श्लोक (29)- पश्यतो युवतिं दूरान्नखोच्छिष्टपयोधराम्। बहुमानः परस्यापि रागयोगश्र्च जायते।।
अर्थ : पुरुष ने जिस स्त्री के शरीर पर नाखूनों के निशान दिये हो उसे जब वह दूर से ही देखता है तो उसके अंदर उसके प्रति सम्मान और काम-उत्तेजना पैदा हो जाती है।
श्लोक (30)- परषश्र्च प्रदेशुषु नखचिह्रैर्विचिह्रितः। चितं स्थिरमपि प्रायश्र्चलयत्येव योषितः।।
अर्थ : अपने शरीर के अलग-अलग अंगों में पुरुष के द्वारा लगाए गए नाखूनों के निशान देखकर अक्सर स्त्री का दिल खुश हो जाता है।
श्लोक (31)- नान्युत्पटुतरं किंचिदस्ति रागविवर्धम्। नखदन्तसमुत्थानां कर्मणां गतयो यथा।।
अर्थ : स्त्री और पुरुष की काम-उत्तेजना को सबसे ज्यादा नखक्षत और दंतक्षत क्रिया तेज करती है।
वात्स्यायन ने कामसूत्र में खासतौर पर 8 तरह के नखक्षतों को बताया है और यह भी बताया है कि नखक्षतों को किस समय, किस जगह और किस तरह का करना चाहिए।
संभोग क्रिया के समय नखक्षत करना एक कला माना जाता है। वात्स्यायन का यह विचार सबसे अच्छा लगता है कि संभोग करते समय पुरुष को हर क्रिया सही तरीके से करने की इच्छा होती है। जिस कार्य को पुरुष सबसे अलग तरीके से करता है स्त्रियां भी उसी पुरुष को सबसे ज्यादा प्यार करती है और उसको पाने की कोशिश में लगी रहती हैं।
वात्स्यायन के मुताबिक संभोग क्रिया के समय नखक्षत सिर्फ संभोग क्रिया को याद करना ही है। जो स्त्री किसी कारण से अपने प्रेमी को छोड़ देती है वह अगर अपने शरीर के गुप्त स्थानों में पुरुष के द्वारा दिए हुए निशानों को देखती है तो उसके दिल में प्रेमी के लिए फिर से प्यार उमड़ पड़ता है।
नखक्षत और दंतक्षत क्रिया के फलस्वरूप स्त्री के शरीर पर जो निशान होते हैं वह उसको उसके यौवनवास्था की याद दिलाते हैं। अगर उस तरह के निशान नहीं होते तो स्त्री लंबे समय से अपने छोड़े हुए प्रेमी को बिल्कुल ही भूल जाती है। यह ही निशान स्त्री को अपने रूप, यौवन और संभोग क्रिया में बिताए हुए पलों को आंखों के सामने ले आते हैं।
शरीर के उन भागों में काम-उत्तेजना बढ़ाने वाले केंद्र होते हैं जो संभोग से पहले की जाने वाली चुंबन, आलिंगन या नखक्षत क्रीड़ा की प्रक्रिया में यौनरूप से ज्यादा अनुभूतिशील होते हैं। आचार्य वात्स्यायन ने शरीर के जिन अंगों में नखक्षत करने का विधान बताया है वह सभी काम-उत्तेजना के केंद्र हैं। यौन दृष्टि के मुताबिक हर इंसान के यह अंग शरीर के दूसरे अंगों की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इनके अलावा उसके कुछ ऐसे अंग भी हैं जो किसी खास मौके पर संवेदनशील हो जाते हैं। यौवन के समय यह काम -उत्तेजनाके केंद्र ज्यादा खास स्थान रखते हैं। राग की अभिवृद्धि, पूर्ण अनुभूति और तृप्ति किस तरह से मिलती है- इसकी शिक्षा में नखक्षत आदि का ज्ञान जरूर हासिल करना चाहिए। यह प्रेमी का कर्तव्य होता है कि वह प्राकक्रीड़ा के स्त्री के शरीर के उन अंगों को तलाश करके विकसित करे जिसकी वजह से प्रेमिका में पूरी तरह से काम-उत्तेजना पैदा हो जाए। आचार्य वात्स्यायन ने इसी दृष्टिकोण को अपने ध्यान में रखकर नखक्षत और दंतक्षत अध्याय की रचना की है।
यहां पर एक बात बताना और भी जरूरी है कि आचार्य वात्स्यायन ने जिस तरह संभोग करने के लिए पुरुष और स्त्री को शश या मृगी आदि की संज्ञा दी है उसी तरह शारीरिक विज्ञान और मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से नखक्षत प्रयोग के लिए भी उसे वर्गीकरण करना चाहिए था क्योंकि हर इंसान का सांचा बराबर होते हुए भी आवयविक गठन अलग-अलग होता है।
श्लोक- इति श्रीवात्स्यायनीये कामसूत्रे सांप्रयोगिके द्वितीयेऽधिकरणे चतुर्थेऽध्यायः।
नखच्छेद
अर्थ : उत्तेजना के अधिक बढ़ जाने पर स्त्री और पुरुष एक-दूसरे के शरीर पर नाखूनों को गढ़ाते हैं।
श्लोक (2)- तस्य प्रथमसमागमे प्रवासप्रत्यागमने प्रवासगमने क्रुद्धप्रसन्नायां मत्त्यां च प्रयोगः। न नित्यमचण्डवेगयोः।।
अर्थ : अपने अंदर की काम-उत्तेजना को स्त्री को दिखाने के लिए मन्दवेगी (संभोग क्रिया में पूरी तरह से जो पुरुष संपन्न नहीं होता) पुरुष कहीं दूसरे देश आदि से वापस आने के बाद, सुहागरात के दिन, स्त्री के गुस्से में आने के बाद, काम से खाली होने के बाद या खुश होने के बाद नाखूनों से सहलाते और खुजलाते हैं।
श्लोक (3)- तथा दशनच्छेद्यस्य सात्म्यवशाद्धा।।
नखच्छेद के भेद :
अर्थ- जिस तरह से संभोग क्रिया के समय नाखूनों से सहभागी के शरीर पर हमला किया जाता है वैसी ही क्रिया दांतों से भी की जा सकती है।
श्लोक (4) – तदाच्छुरितकमर्धचन्द्रो मंडल रेखा व्याघ्रनखं मयूरपदकं शशप्लुतकमत्पलपत्रकमिति रूपतोऽष्टविकल्पम्।।
अर्थ : निशानों के अनुसार नखच्छेद 8 प्रकार के होते हैं-
• आच्छुरितक।
• अर्धचन्द्र।
• मंडल।
• रेखा।
• व्याघ्रनख।
• मयूरपदक।
• शशप्लुतक।
• उत्पलपत्रक।
श्लोक (5)- कक्षौ स्तनौ गलः पृष्ठं जघनमुरू च स्थानानि।।
नखच्छेद स्थान :
अर्थ : दोनों बगलों में, दोनों स्तन, गला, पीठ, जांघों और जांघों के जोड़ नाखून गढ़ाने के स्थान होते हैं।
श्लोक (6)- प्रवृत्तरतिचक्राणां न स्थानमस्थानं वा विद्यत इति सुवर्णनाभः।।
अर्थ- सुवर्णनाभ के विचार :
कोई भी स्त्री और पुरुष जब संभोग क्रिया में लीन हो जाते हैं तो उन्हें इस बात का कोई ध्यान नहीं रह जाता कि सहभागी के शरीर में किस स्थान पर नाखूनों को गड़ाना चाहिए या किस स्थान पर नहीं गड़ाना चाहिए।
श्लोक (7)- तत्र सव्यहस्तानि प्रत्यग्रशिखराणि द्वित्रिशिखराणि चण्डवेगयोर्नखानि स्युः।।
अर्थ : ऐसे व्यक्ति जिनमें काम-उत्तेजना बहुत ज्यादा होती है वह अपने बाएं हाथ के नाखूनों को नुकीले तथा लंबे आकार के रखते हैं। कोई तो तो अपने हर नाखून में 2-3 नोकें रखता है।
श्लोक (8)- अनुगतराजि सममुज्जवलममलिनमविपाटितं विवर्धिष्णु मृदुस्त्रिग्धदर्शनमिति नखगुणा।।
अर्थ- ऩाखूनों के 8 गुण :
• नाखून के बीच में जो लाइने होती हैं वह नाखून के रंग की ही होनी चाहिए।
• नाखून हमेशा चमकदार होने चाहिए।
• नाखूनों को साफ करके रखना चाहिए।
• सारे नाखून एक ही आकार के होने चाहिए न तो कोई ऊंचा-नीचा होना चाहिए और न ही कोई टेढ़ा-मेढ़ा होना चाहिए।
• नाखून फटे हुए नहीं चाहिए।
• नाखून बढ़ने वाले होने चाहिए।
• नाखून हमेशा मुलायम होने चाहिए।
• नाखून देखने में चिकने होने चाहिए।
श्लोक (9)- दीर्घाणि हस्तशोभीन्यालोके च योषितां चित्तग्राहीणि गौडानां नखानि स्युः।।
अर्थ : एक गौड़ नाम का देश है जहां के लोगों के नाखून लंबे होते हैं और यही लंबे नाखून उनके हाथों की शोभा माने जाते हैं। इन नाखूनों को देखकर ही वहां की युवतियां वहां के युवकों की ओर आकर्षित होती हैं।
श्लोक (10)- मध्यमान्युभयभाञ्ञि महाराष्ट्रकाणामिति।।
अर्थ : महाराष्ट्र में रहने वाले निवासियों के नाखून मध्यम आकार के होते हैं।
श्लोक (11)- तैः सुनियमितैर्हनुदेशे स्तनयोरधरे वा लघुकरणमनद्रतलेखं स्पर्शमात्रजननाद्रोमाञ्ञकरमंते संनिपातवर्धमानशब्दमाच्छुरितकम्।।
अर्थ- नखच्छेद के लक्षण :
अपने दोनों हाथों की उंगलियों को एकसाथ मिलाकर गालों, स्तनों और होंठों पर इतने हल्के से स्पर्श करना चाहिए कि शरीर में उत्तेजना सी भर जाए। इसके बाद अंगूठे से दूसरे नाखूनों का खुटका मारकर स्पर्श करना आच्छुरितक नखच्छेद कहलाता है।
श्लोक (12)- प्रयोज्यायां च तस्याग्ङसंवाहने शिरसः कण्डूयने पिटकभेदने व्याकुलीकरणे भीषणेन प्रयोगः।।
अर्थ- आच्छुरितक का प्रयोग :
जब स्त्री पुरुष के शरीर को दबा रही हो, सिर खुजला रही हो, मुहांसों को फोड़ रही हो या जब स्त्री के शरीर में इतनी उत्तेजना भरनी हो कि वह बेचैन हो जाए तो उस समय आच्छुरितक नखच्देद्य का इस्तेमाल करना चाहिए।
श्लोक (13)- ह्यस्वानि कर्मसहिष्णूनि विकल्पयोजनासु च स्वेच्छापातीनि दाक्षिणात्यानाम्।।
अर्थ : दक्षिण देश में रहने वाले लोग अक्सर छोटे नाखून रखते हैं। उनके ऐसे नाखून हर तरह के नखच्छेद्य कर सकते हैं। ऐसे नाखून न तो टूटते है और न ही मुड़ते हैं।
श्लोक (14)- ग्रीवायां स्तनपृष्ठे च वक्रो नखपदनिवेशोऽर्धचन्द्रकः।।
अर्थ- अर्धचन्द्र :
संभोग क्रिया के जब स्तनों तथा गर्दन पर अर्धचन्द्र की तरह नाखूनों को गढ़ाकर निशान बनाया जाता है तो उसे अर्धचन्द्र नखच्छेद्य कहा जाता है।
श्लोक (15)- तावैव द्वौ परस्पराभिमुखौ मण्डलम्।।
अर्थ- मंडल :
जब दो अर्धचन्द्रों को एक-दूसरे के आमने-सामने पास ही पास किया जाता है तो उसे मण्डल नखच्छेद कहते हैं।
श्लोक (16)- नाभिमूलककुन्दरवंक्षणेषु तस्य प्रयोगः।।
अर्थ- प्रयोग :
संभोग क्रिया के समय सहभागी के पेड़ू में ककुंदर और जांघों के जोड़ो में मण्डल नाम का गोल नखक्षत करना चाहिए।
श्लोक (17)- सर्वस्थानेषु नातिदीर्घा लेखा।।
अर्थ- रेखा :
संभोग क्रिया के समय सहभागी के शरीर के किसी भी अंग में अपने नाखूनों के द्वारा रेखा सी बनाई जा सकती है लेकिन कुछ ज्यादा बड़ी नहीं।
श्लोक (18)- सैवा वक्रा व्याघ्रनखकमास्तनमुखम्।।
अर्थ : अगर उस रेखा को थोड़ा सा टेढ़ा खींच करके स्तन के या मुंह के पास खींची जाए तो उसे व्याघ्ररेखा कहा जाता है।
श्लोक (19)- पञ्ञभिरभिमुखैलेखा चुचुकाभिमुखी मयूरपदकम्।।
अर्थ- मयूरपदक :
संभोग क्रिया के समय जब स्त्री के स्तनों के निप्पलों को हाथ की पांचों उंगलियों से पकड़कर जब अपनी तरफ खींचा जाता है तो उस समय जो रेखांए बनती है उन्हें मयूरपदक कहा जाता है।
श्लोक (20)- तत्संप्रयोगश्र्लाघायाः स्तनचूचुके संनिकृष्टानि पञ्ञनखपदानि शशप्लुतकम्।।
अर्थ- शशप्लुतक :
संभोग क्रिया के समय जब स्त्री मयूर पदक नखक्षत की इच्छा करती है तो उस समय उसके स्तनों के निप्पलों को पांचों उंगलियों से दबाकर जो निशान बना दिया जाता है तो उसे शशलुतक कहते हैं।
श्लोक (21)- स्तनपृष्ठे मेखालापथे चोत्पलपत्राकृतीत्युपलपत्रकम्।।
अर्थ- उत्पल पत्रक :
संभोग क्रिया के समय जब स्त्री के स्तन और कमर पर कमल की पंखुड़ियों की तरह नाखूनों से निशान बनाए जाते हैं उसे उत्पलपत्रक कहा जाता है।
श्लोक (22)- ऊर्वाः स्तनपृष्ठे च प्रवासं गच्छतः स्मारणीयके संहताश्र्चतस्त्रस्तिस्त्रो वा लेखाः। इति नखकर्माणि।।
अर्थ : जिस समय पुरुष अपनी पत्नी से दूर जा रहा होता है तो वह स्त्री के स्तनों तथा जांघों के जोड़ों पर अपने नाखूनों से निशान बना देता है ताकि स्त्री को उन निशानों को देखकर उसकी याद आती रहे।
श्लोक (23)- आकृतिविकारयुक्तानि चान्यान्यपि कुर्वीत।।
अर्थ : इनके अलावा स्त्री के शरीर पर दूसरे कई तरह के निशान बनाए जा सकते हैं।
श्लोक (24)- विकल्पानामनन्तत्वादानन्तयाच्च कौशलविधेरभ्यासस्य च सर्वगामित्वाद्रागात्मकत्वाच्छेद्यस्य प्रकारन् कोऽभिसमीक्षितुमर्हतीत्याचार्याः।।
अर्थ : कामशास्त्र की रचना करने वाले लेखकों ने यह कहा है कि अभ्यास तथा कौशल से व्यापकता के कारण नखक्षत के अलग-अलग भेदों की कोई गिनती नहीं की जा सकती है। इसके अलावा काम-उत्तेजना में भरकर व्यक्ति नखक्षत करने में लीन हो जाता है। इस अवस्था में उसे नखक्षत करने की कला और नखक्षत के भेदों का ध्यान नहीं रहता है।
श्लोक (25)- भवित हि रागेऽपि चित्रापेक्षा। वैचित्र्याच्च परस्परं रागो जनयित्वयः। वैचक्षणययुक्ताश्र्च गणिकास्तत्कामिनश्र्च किं पुनरिहेति वात्यायनः।।
अर्थ : इस बताए हुए कथन के मुताबिक आचार्य वात्स्यायन का कहना है कि उत्तेजित अवस्था में कई तरह की चित्र-विचित्र क्रियाएं करने की इच्छा बनी ही रहती है। जो लोग संभोग करने की बहुत सी कलाओं में निपुण होते हैं उनसे संभोग करने की इच्छा ऐसी स्त्रियां भी रखती हैं जो इस कला में बहुत ही ज्यादा निपुण होती हैं और ऐसी ही स्त्रियों की इच्छा इस कला में निपुण पुरुष भी किया करते हैं।
श्लोक (26)- न तु परपरिगृहीतास्वेवं। प्रच्छेन्नेषु प्रदेशेषु तासामनुस्मरणार्थ रागवर्धनाच्च विशेषान्दर्शयेत्।।
अर्थ : पराई स्त्रियों के साथ नखक्षत (नाखूनों से काटना), दन्तक्षत (दांतों से काटना) आदि नहीं करना चाहिए बल्कि यादगार के लिए तथा उत्तेजना को बढ़ाने के लिए उनके गुप्त स्थानों में नाखूनों के द्वारा निशान बना देने चाहिए।
श्लोक (27)- नखक्षतानि पश्यन्त्या गृढास्थानेषु योषितः चिरोत्सृटाप्यभिनवा प्रीतिर्भवति पेशला।।
अर्थ : स्त्री जब अपने गुप्त अंगों में नाखूनों के निशान देखती है तो उसे अपने पुराने प्रेमी की याद आ जाती है।
श्लोक (28)- चिरोत्सृष्टेषु रागेषु प्रीतिर्गच्छेत्पराभवभ्। रागायतनसंस्मारि यदि न स्यान्नखक्षतम्।।
अर्थ : स्त्री के शरीर पर अगर रूप, गुण, यौवन की याद दिलाने वाले पुरुष के नाखूनों के निशान नहीं होते हैं तो इसके कारण उसका काफी दिनों से छूटा हुआ प्यार बिल्कुल ही समाप्त हो जाता है।
श्लोक (29)- पश्यतो युवतिं दूरान्नखोच्छिष्टपयोधराम्। बहुमानः परस्यापि रागयोगश्र्च जायते।।
अर्थ : पुरुष ने जिस स्त्री के शरीर पर नाखूनों के निशान दिये हो उसे जब वह दूर से ही देखता है तो उसके अंदर उसके प्रति सम्मान और काम-उत्तेजना पैदा हो जाती है।
श्लोक (30)- परषश्र्च प्रदेशुषु नखचिह्रैर्विचिह्रितः। चितं स्थिरमपि प्रायश्र्चलयत्येव योषितः।।
अर्थ : अपने शरीर के अलग-अलग अंगों में पुरुष के द्वारा लगाए गए नाखूनों के निशान देखकर अक्सर स्त्री का दिल खुश हो जाता है।
श्लोक (31)- नान्युत्पटुतरं किंचिदस्ति रागविवर्धम्। नखदन्तसमुत्थानां कर्मणां गतयो यथा।।
अर्थ : स्त्री और पुरुष की काम-उत्तेजना को सबसे ज्यादा नखक्षत और दंतक्षत क्रिया तेज करती है।
वात्स्यायन ने कामसूत्र में खासतौर पर 8 तरह के नखक्षतों को बताया है और यह भी बताया है कि नखक्षतों को किस समय, किस जगह और किस तरह का करना चाहिए।
संभोग क्रिया के समय नखक्षत करना एक कला माना जाता है। वात्स्यायन का यह विचार सबसे अच्छा लगता है कि संभोग करते समय पुरुष को हर क्रिया सही तरीके से करने की इच्छा होती है। जिस कार्य को पुरुष सबसे अलग तरीके से करता है स्त्रियां भी उसी पुरुष को सबसे ज्यादा प्यार करती है और उसको पाने की कोशिश में लगी रहती हैं।
वात्स्यायन के मुताबिक संभोग क्रिया के समय नखक्षत सिर्फ संभोग क्रिया को याद करना ही है। जो स्त्री किसी कारण से अपने प्रेमी को छोड़ देती है वह अगर अपने शरीर के गुप्त स्थानों में पुरुष के द्वारा दिए हुए निशानों को देखती है तो उसके दिल में प्रेमी के लिए फिर से प्यार उमड़ पड़ता है।
नखक्षत और दंतक्षत क्रिया के फलस्वरूप स्त्री के शरीर पर जो निशान होते हैं वह उसको उसके यौवनवास्था की याद दिलाते हैं। अगर उस तरह के निशान नहीं होते तो स्त्री लंबे समय से अपने छोड़े हुए प्रेमी को बिल्कुल ही भूल जाती है। यह ही निशान स्त्री को अपने रूप, यौवन और संभोग क्रिया में बिताए हुए पलों को आंखों के सामने ले आते हैं।
शरीर के उन भागों में काम-उत्तेजना बढ़ाने वाले केंद्र होते हैं जो संभोग से पहले की जाने वाली चुंबन, आलिंगन या नखक्षत क्रीड़ा की प्रक्रिया में यौनरूप से ज्यादा अनुभूतिशील होते हैं। आचार्य वात्स्यायन ने शरीर के जिन अंगों में नखक्षत करने का विधान बताया है वह सभी काम-उत्तेजना के केंद्र हैं। यौन दृष्टि के मुताबिक हर इंसान के यह अंग शरीर के दूसरे अंगों की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इनके अलावा उसके कुछ ऐसे अंग भी हैं जो किसी खास मौके पर संवेदनशील हो जाते हैं। यौवन के समय यह काम -उत्तेजनाके केंद्र ज्यादा खास स्थान रखते हैं। राग की अभिवृद्धि, पूर्ण अनुभूति और तृप्ति किस तरह से मिलती है- इसकी शिक्षा में नखक्षत आदि का ज्ञान जरूर हासिल करना चाहिए। यह प्रेमी का कर्तव्य होता है कि वह प्राकक्रीड़ा के स्त्री के शरीर के उन अंगों को तलाश करके विकसित करे जिसकी वजह से प्रेमिका में पूरी तरह से काम-उत्तेजना पैदा हो जाए। आचार्य वात्स्यायन ने इसी दृष्टिकोण को अपने ध्यान में रखकर नखक्षत और दंतक्षत अध्याय की रचना की है।
यहां पर एक बात बताना और भी जरूरी है कि आचार्य वात्स्यायन ने जिस तरह संभोग करने के लिए पुरुष और स्त्री को शश या मृगी आदि की संज्ञा दी है उसी तरह शारीरिक विज्ञान और मनोविज्ञान के दृष्टिकोण से नखक्षत प्रयोग के लिए भी उसे वर्गीकरण करना चाहिए था क्योंकि हर इंसान का सांचा बराबर होते हुए भी आवयविक गठन अलग-अलग होता है।
श्लोक- इति श्रीवात्स्यायनीये कामसूत्रे सांप्रयोगिके द्वितीयेऽधिकरणे चतुर्थेऽध्यायः।
चतुर्थ अध्याय : नखरदन जातिप्रकरण
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9:33 AM
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