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तृतीय अध्याय : चुम्बन विकल्प प्रकरण

श्लोक(1)- चुम्बननखदशनच्देद्यानां न पौर्वापर्यमस्ति। रागयोगात् प्राक्संयोगादेषां प्राषान्येन प्रयोगः। प्रहणनसीत्कृतयोश्च संप्रयोगे।
अर्थ : नखक्षत (नाखूनों को गढ़ाना), दन्तक्षत (दांतों से काटना), चुम्बन आदि का प्रयोग अक्सर संभोग क्रिया करने से सहभागी की काम-उत्तेजना को जागृत करने से पहले किया जाता है। यह तीनों एक-दूसरे से पीछे नहीं होते हैं क्योंकि संभोग क्रिया से पहले किसी चीज के लिए नियम नहीं होता कि पहले चुंबन करे या कोई और क्रिया करें। संभोग के समय तो सिर्फ स्ट्रोक और सीत्कार का ही प्रयोग होता है।

श्लोक(2)- सर्व सर्वत्र। रागस्यानपेक्षितत्वात्। इति वात्स्यायनः।।
अर्थ : वात्स्यायन के मुताबिक उत्तेजना किसी नियमों में बंधी नहीं होती है। इसी वजह से चुम्बन, नाखूनों को गढ़ाना और दांतों से काटना आदि क्रियाएं किसी भी समय की जा सकती है।

श्लोक(3)- तानि प्रथमरते नातिव्यक्तानि विश्रब्धिकायां विक्लपेन च प्रयुञ्ञीत। तथाभूतत्वाद्रागस्य। ततः परमतित्वरया विशेषवत्समुच्चयेन रागसंधुक्षेणार्थम्।।
अर्थ : पहली बार संभोग क्रिया करते समय चुम्बन, नाखूनों को गढ़ाना और दांतों से काटना आदि क्रियाओं को एकसाथ नहीं करना चाहिए। जिस तरह से शरीर में उत्तेजना बढ़ती है उसी तरह चुम्बन आदि क्रियाओं को करना चाहिए। उत्तेजना बढ़ जाने के बाद चुम्बन आदि का एकसाथ और जल्दी-जल्दी प्रयोग करना चाहिए। इसकी वजह से काम-उत्तेजना तेज होती है और संभोग क्रिया में आनंद आता है।

श्लोक(4)- ललाटालककपोलनयनवक्षः स्तनोष्ठान्तुर्मखेषु चुम्बनम्।।
अर्थ- गाल, आंखे, छाती, माथा, स्तन, नीचे वाला होंठ और जीभ को चूमा जा सकता है। लाटदेश के लोग स्त्री की जांघ, बाहुमूल और नाभि को भी चूमते हैं। काम-उत्तेजना के न्यूनाधिक्य के कारण और देशाचार भेद चुम्बन के स्थानों में भेद है। वात्स्यायन के मुताबिक यहां पर सभी मनुष्यों के चुंबन स्थानों की गणना की गई है।
वात्स्यायन के मुताबिक संभोग के समय काम-उत्तेजना को बढ़ाने के लिए चुम्बन करना चाहिए। लेकिन चुम्बन के साथ नाखूनों को गढ़ाना और दांतों से काटना स्वाभाविक हो जाता है। जब पुरुष कामोत्तेजित हो जाता है तो उसे उस समय यह ध्यान में नहीं रहता कि पहले क्या करें और क्या न करें।
आचार्य वात्स्यायन ने यहां पर राग (उत्तेजना) शब्द देकर अपनी सार्वभौम काम-शास्त्रीय पश्चिम चारुता का परिचय दिया है। संभोग क्रिया करने से पहले रति की पांचवीं अवस्था को राग कहते हैं। संभोग की प्रौढ़ इच्छा का नाम रति है और जब यह रति धीरे-धीरे बढ़ती है तो वह प्रेम कहलाती है।

श्लोक(5)- ऊरुसंधिबाहुनाभिमूलयोर्लाटानाम्।।
अर्थ- लाट देश के रहने वाले लोग स्त्री के गुप्त स्थानों जैसे होंठों, जांघ के जोड़, कांख और नाभि को चूमते हैं।

श्लोक(6)- रागवशाद्देशप्रदृत्तेश्च सन्ति तानि तानि स्थानानि, न तु सर्वजनप्रयोज्यानीति वात्स्यायनः।।
अर्थ- आचार्य वात्स्यायन के मुताबिक जो लोग ऐसे अंगों को चूमते हैं उनका यह चुम्बन देशाचार के अनुकूल है।

श्लोक(7)- तद्यथा-निमित्तकं स्फुरितकं घट्टितकमिति त्रीणि कन्या चुम्बनानि।।
अर्थ- जिस लड़की ने अभी युवावस्था में कदम रखा हो उसका चुम्बन 3 तरह का होता है-
• निमित्तक
• स्फुरितक
• घट्टितक

श्लोक(8)- बलात्कारेण नियुक्ता मुखे मुखमाधत्ते न तु विच्षेटत इति निमित्तकम्।।
अर्थ- निमित्तक :
जब पुरुष सबसे पहले शर्माने वाली स्त्री से अपने होंठों पर जबरदस्ती चुंबन कराता है तो स्त्री पुरुष के मुंह पर अपना हाथ रख तो देती है लेकिन अपने होंठों को चूमने के लिए बिल्कुल भी नहीं हिलाती। इस तरह के चुंबन को निमित्तक कहा जाता है।

श्लोक(9)- वदने प्रवेशितं चौष्ठं मनागपत्रपावग्रहीतुमिच्छन्ती स्पन्दयति स्वमोष्ठं नोत्तरमुत्सहत इति स्फुरितकम्।।
अर्थ- स्फूरितक :
एक बार जब संभोग क्रिया हो जाती है तो उसके बाद पुरुष अपने होंठों को जब स्त्री के होंठों पर रख देता है तब शर्माती हुई स्त्री पति के होंठों को अपने होंठों से दबाना भी चाहती है और अपने नीचे वाले होंठ को हिलाती भी है लेकिन शर्म के कारण उसके होंठ चिपके रह जाते हैं। इस तरह के चुम्बन को स्फुरितक कहते हैं।

श्लोक(10)- ईषत्परिगृह्मा विनिमीलितनयना करेण च तस्य नयने अवच्छादयन्ती जिह्वाग्रेण घट्टयति इति घट्टितकम्।।
अर्थ- घट्टितक :
संभोग क्रिया का आनंद प्राप्त करने के बाद स्त्री अपने होंठों पर रखे हुए पुरुष के होंठों को पकड़ती है लेकिन शर्म के मारे आंखें बंद कर लेती है तथा अपने हाथों से पति की दोनों आंखों को बंद करके जीभ के आगे के भाग से पति के होंठ को रगड़ती है। इस प्रकार के चुम्बन को घट्टितक कहते हैं।

श्लोक(11)- सर्म तिर्यगुद्धान्तमवपीडितकमिति चतुविधमपरे।।
अर्थ- 4 तरह के चुंबन इस तरह से हैं-
• सम अर्थात पति और पत्नी एक-दूसरे के सामने मुंह करके एक-दूसरे के होंठों को चूसते हैं।
• तिर्यक अर्थात् मुंह को थोड़ा सा मोड़कर तथा होंठों को गोल-गोल आकार में बनाकर आपस में पकड़ना।
• उदभ्रान्त अर्थात स्त्री की पीठ की तरफ बैठकर अपने हाथों से उसका सिर तथा ठुड्डी पकड़कर अपनी तरफ घुमाकर होठों को चूमना।
• अवपीड़ितक अर्थात पहले दिए गए तीनों तरह के चुंबनों में होठों को बहुत जोर से दबाया जाए।

श्लोक(12)- अङलिसंपुटेन पिण्डीकृत्य निर्दशनमोष्ठोपुटेनावपीडयेदित्यवपीडितकं पञ्ञममपि करणम्।।
अर्थ- पांचवा भेद :
पुरुष को अपने दोनों हाथों की उंगलियों से स्त्री के दोनों गालों को दबाकर उसके होंठों को अपने मुंह में लेकर बहुत जोर से इस तरह से दबाना चाहिए कि उसके दांत न गड़ने पाए। इस प्रकार के चुंबन को अवपीड़ितक कहा जाता है।
श्लोक(13)- द्यूत चात्र प्रवर्तयेत्।।
अर्थ- चुम्बन द्यूत :
चुंबन करते समय स्त्री और पुरुष को आपस में बाजी लगानी चाहिए।

श्लोक(14)- पूर्वमधरसम्पादनेन जितमिदं स्यात्।।
अर्थ : पुरुष या स्त्री में से जो भी आपस में से किसी के होंठ को पहले पकड़ लेता है उसी की जीत मानी जाती है।

श्लोक(15)- तत्र जिता सार्धरुदितं करं विधुनुयात्प्रणुदेद्दशेतपरिवर्तयेद्वलादाह्ता विवदेत्पुनरप्यस्तु पण इति ब्रूयात्। तत्रापि जिता द्विगुणमायस्येत्।।
अर्थ- चुम्बन कलह :
अगर चुम्बनों की बाजी पुरुष मार लेता है तो स्त्री को हाथ-पैरों को पटकना चाहिए, पति को धक्का मारकर हटा देना चाहिए, दांतों से काटना चाहिए तथा दूसरी तरफ मुंह करके सो जाना चाहिए। अगर पुरुष स्त्री का मुंह अपनी तरफ करना चाहे तो उसे उससे कहना चाहिए कि चलो एक बार हो जाए और अगर स्त्री फिर भी हार जाती है तो उसे पहले से ज्यादा क्लेश आदि उत्पन्न कर देने चाहिए।

श्लोक(16)- विश्रब्धस्य प्रमत्तस्य वाधरमवगृह्य दशनान्तर्गतमनिर्गमे कृत्वा हसेदुत्क्रोशेत्तर्जयेद्वल्गेदाह्लयेन्नृत्येतप्रनर्तितभ्रुणा च विचलनयनेन मुखेन विहसन्ती तानि तानि च ब्रूयात्। इति चुम्बनयुतकलहः।।
अर्थ- कपटघूत :
चुंबनों की बाजी लगाने पर दूसरी बार भी हार जाने पर स्त्री को पुरुष के जरा सा भी असावधान होते ही उसके होंठ को अपने दांतों से दबा लेना चाहिए। ऐसा होने पर स्त्री को जोर से हंसना चाहिए और पुरुष को कहना चाहिए कि अगर छुड़ाने की कोशिश करोगे तो काट लूंगी। इसके बाद अपनी जीत पर इतराती हुई पुरुष को ताना मारे, जो दिल में हो वही बोले, आंखों को घुमाकर और हंसते हुए पुरुष को चुनौती दें। यहां पर चुम्बन द्युत सम्बन्धी प्रेमकलेश समाप्त होता है।

श्लोक(17)- एतेन नखदशनच्देद्यप्रहणनद्यूतकलह व्याख्याताः।।
अर्थ : चुम्बन कलेह की ही तरह स्त्री को पुरुष से नखक्षत (नाखूनों को गढ़ाना), दन्तक्षत (दांतों से काटना) तथा प्रहार करने की बाजी भी लगानी चाहिए तथा हारने के बाद उसी तरह से गुस्सा करना चाहिए।

श्लोक(18)- चण्डवेगयोरेव त्वेषां प्रयोगः तत्सात्मयात्।।
अर्थ : यह प्रेम कलेह ऐसे स्त्री-पुरूषों के लिए ही ठीक है जो बहुत ही तेज गति से संभोग क्रिया करते हुए बहुत समय तक ठहरते हैं।

श्लोक(19)- तस्यां चुम्बन्त्यामयमप्युत्तरं गृह्णीयात्। इत्युत्तरचुम्बितम्।।
अर्थ : जिस समय स्त्री, पुरुष के होंठों को चूम रही हो उस समय पुरुष को भी स्त्री के ऊपर वाले होंठ को अपने होठों से दबा लेना चाहिए। इस तरह के चुम्बन को उत्तर चुम्बन कहते हैं।

श्लोक(20)- ओष्ठसंदंशेनावगृह्यौष्ठद्वयमपि चुम्बेत। इति संपुटकं स्त्रियाः, पुंसो वाऽजातव्यञ्ञनस्य।।
अर्थ : पुरुष को स्त्री के दोनों होंठों को पकड़कर चुम्बन करना चाहिए। इसी तरह स्त्री भी पुरुष के दोनों होंठों को पकड़कर चूम सकती है। लेकिन यह उन्ही पुरूषों के साथ संभव है जिनके मूंछे नहीं होती है। इस चुम्बन को सम्पुटिकल कहते हैं।

श्लोक(21)- तस्मिन्नितरोऽपि जिह्वयास्या दशनान्घट्टयेत्तालु जिह्वां चेति जिह्वायुद्धम्।।
अर्थ : जीभ, मुंह और दांत युद्ध-
पुरुष जब सम्पुट चुम्बन करता हुआ स्त्री के मुंह के तालु और दांतों में अपनी जीभ को जोर से रगड़ता है तो उसे जिह्वायुद्ध (जीभ का युद्ध) कहते हैं।

श्लोक(22)- एतेन बलाद्वदनरदनग्रहणं दानं च व्याख्यातम्।।
अर्थ : इसी तरह मुखयुद्ध (मुंह का युद्ध) और दन्तयुद्ध (दांतों को युद्ध) भी होता है।

श्लोक(23)- समं पीडितमञ्ञितं मृदु शेषाङेषु चुम्बन स्थानविशेषयोगात्। इति चुम्बनविशेषाः।।
अर्थ : खास प्रकार के चुम्बन- इन चुम्बनों के अलावा 4 प्रकार के चुम्बन होते हैं-
• सम- इस प्रकार के चुम्बन में स्त्री और पुरुष को एक-दूसरे के सामने बैठकर या लेटकर एक-दूसरे की जांघों, छाती और बगल को चूमना या गुदगुदाना होता है।
• पीड़ित- स्त्री के गालों, नाभि और नितम्बों को जोर से दबाना या उनको नोचना।
• अन्चित- स्तनों के नीचे और बाहूमूल में धीरे से गुदगुदी करना या फिर हल्के से चूमना।
• मृदु- स्त्री के स्तनों में, गालों में, नितंबों तथा पीठ पर हाथ फेरना या सहलाना।
आचार्य वात्स्यायन चुंबन में बाजी लगाने के बारे में बताते हैं अर्थात स्त्री या पुरुष में से कौन पहले किसका होंठ चूमता है या पकड़ता है। अगर इसमें स्त्री हार जाती है तो उसे रति कलह करने की राय दी है जैसे वह सिसकियां भरते हुए अपने हाथों को पटके, पुरुष को धक्का मारकर अपने से दूर कर दे, अपने मुंह को दूसरी तरफ घूमा ले। अगर फिर भी पुरुष जबर्दस्ती उसे अपनी तरफ करना चाहे तो स्त्री को उससे झगड़ा करते हुए कहना चाहिए कि चलो एक बाजी फिर से हो जाए।
अगर स्त्री दुबारा से चुंबनों की बाजी हार जाती है तो उसे पहले से भी ज्यादा शोर मचाना चाहिए। इसके बाद अचानक धोखे से पुरुष के होठों को अपने दांतों से दबाकर हंसते हुए अपने जीतने की घोषणा करनी चाहिए। पुरुष को यह कहकर डराए कि अगर छुड़ाने की कोशिश की तो काट लूंगी। आंखों के इशारे से अपनी जीत को जाहिर करे। इसी तरह दांत और नाखूनों से भी चोट पहुंचाने की कला के भेद हैं।
आचार्य वात्स्यायन ने इस तरह के क्लेश की जो सीख स्त्री को दी है उसका अर्थ उत्तेजना को बढ़ाना है। यह जो क्लेश करने के बारे में बताया है वह असली झगड़ा न होकर सिर्फ काम-उत्तेजना को बढ़ाने वाले प्रेम क्लेश होता है। इस तरह के रगड़-झगड़, वाद-विवाद से स्त्री और पुरुष की उन ग्रंथियों से (जिनका संबंध संभोग क्रिया से रहता है) स्राव होता रहता है और शरीर में रोमांच, मन में स्फूर्ति और गुप्त अंगों में उत्तेजना बढ़ती है।
लेकिन इस तरह का प्रेम क्लेश हर किसी स्त्री और पुरुष के लिए सहीं नहीं है। जो स्त्री-पुरुष बहुत तेजी से संभोग क्रिया करने वाले होते हैं या इस क्रिया के समय जल्दी स्खलित नहीं होते हैं, इस तरह के क्लेह आदि से उनका संवेग बढ़ जाता है, संभोग शक्ति की बढ़ोतरी होती है और शारीरिक तथा मानसिक आनंद प्राप्त होता है।

श्लोक(24)- सुप्तस्य मुखमवलोकयन्त्या स्वाभिप्रायेण चुम्बनं रागदीपनम्।।
अर्थ- गुप्त चुम्बन तिथि :
अगर स्त्री सोए हुए पुरुष के मुंह को ताकती हुई चूम लेती है तो वह पुरुष तुरंत उसकी भावनाओं को समझकर जाग जाता है। इस तरह के चुम्बन को रागदीपन कहते हैं।

श्लोक(25)- प्रमत्तस्य विवदमानस्य वाऽन्यतोऽभिमुखस्य सुप्ताभिमुखस्य वा निद्राव्याघातार्थ चलितकम्।।
अर्थ : यदि पुरुष किसी तरह के झगड़े आदि के कारण स्त्री की तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं दे रहा हो तो उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए स्त्री को साधारण तरीके का चुम्बन करना चाहिए। इस तरह के चुम्बन को चलित कम कहा जाता है।

श्लोक(26)- चिररात्रावागतस्य शयनसुप्तायाः स्वाभिप्रायचुम्बनं प्रातिबोधिकम्।।
अर्थ : यदि पुरुष किसी कारण से रात को देर से घर आता है और सोती हुई स्त्री को चूमता है तो इससे पुरुष का मकसद भी पता चलता है और स्त्री भी जाग जाती है। इस प्रकार के चुम्बन को प्रातिबोधिक कहते हैं।

श्लोक(27)- सापि तु भावजिज्ञासार्थिनी नायकस्यागमनकालं संलक्ष्य व्याजेन सुप्ता स्यात्।।
अर्थ : पुरुष का इस तरह चुम्बन करके जगाने वाली स्त्री को चाहिए कि वह उसके प्यार की परीक्षा लेने के लिए उसके आने पर बहाना बनाकर सोती रहे।

श्लोक(28)- आदर्शे कुडये सलिले वा प्रयोज्यायायश्छायाचुम्बनमा-कारप्रदर्शनार्थमेवकार्यम्।।
अर्थ : पानी में, आईने में, दीवार पर अगर स्त्री की परछाई दिख रही हो तो पुरुष को अपने प्यार का इजहार करने के लिए उस परछाई का चुम्बन करना चाहिए।

श्लोक(29)- बालस्य चित्रकर्मणः प्रतिमायाश्च चुम्बनं संक्रान्तकमालिंगनं च।।
अर्थ : किसी छोटे बच्चे को, तस्वीर को या मूर्ति आदि को चूमने या आलिंगन करने के बहाने अपने मन के भावों को स्त्री पर प्रकट किया जा सकता है।

श्लोक(30)- तथा निशि प्रेक्षणके स्वजनसमाजे वा समीपे गतस्य प्रयोज्याया हस्तांङलिचुम्बनं संविष्टस्य वा पादाङलिचुम्बनम्।।
अर्थ : रात में जिस स्थान पर कोई खेल आदि हो रहा हो या फिर सारे रिश्तेदार इकट्ठे हो रहे हों और वहां पर अगर स्त्री पास ही बैठी हो तो चुपके से उसके हाथ या पैरों की उंगलियों को चूमकर अपने प्यार को प्रकट करना चाहिए।

श्लोक(31)- संवाहिकायास्तु नायकमाकारयन्त्या निद्रावशादकामाया इव तस्योर्वोर्वदनस्य निधानमुरुचुम्बनं चेत्याभियोगिकानि।।
अर्थ : अगर पुरुष के पैरों को दबाने वाली स्त्री उससे प्रेम करती हो तो अपने प्यार को प्रकट करने के लिए स्त्री को उसकी जांघ पर अपने मुंह को रख देना चाहिए या उसके पैर को अंगूठे को चूसना चाहिए। लेकिन अगर कोई स्त्री को देखता है तो उसे यही लगना चाहिए कि स्त्री को नींद आ रही है इसलिए उसका मुंह पुरुष की जांघ पर पड़ा है।

श्लोक(32)- कृते प्रतिकृतं कुर्यात्ताडिते प्रतिताडितम्। करणेन च तेनैव चुम्बिते प्रतिचुम्बितम्।।
अर्थ : संभोग क्रिया करने से पहले काम-उत्तेजना को तेज करने के लिए जिस तरह का बर्ताव पुरुष करता है, वैसा ही स्त्री को भी करना चाहिए। जिस चीज से पुरुष स्त्री पर प्रहार करता है उसी से स्त्री को भी पुरुष पर प्रहार करना चाहिए। जिस प्रकार पुरुष चुम्बन करता है उसी तरह स्त्री को भी चूमना चाहिए।

एक-दूसरे के करीब आना, एक-दूसरे का भरोसा जीतना, चुम्बन में क्लेश, प्रहरण, दन्तक्षत, नखाघात आदि स्त्री और पुरुष के प्रेम, भरोसे तथा संभोग-क्रिया को सुखदायी बनाते हैं।
चुम्बन के लिए होठों को खास अंग इसलिए माना जाता है क्योंकि शरीर में सबसे ज्यादा कोमल अंग यहीं होते हैं। होंठों के अंदर ऐसी तरंगे बहती है जो बाहरी स्पर्श पाते ही उन नाड़ियों और ग्रंथियों को उत्तेजित करके उनका मुंह खोल देती है जिनमें कि अंदर स्राव होता है। इसके साथ ही पहले सुख का एहसास भी इसी विद्युतधारा से होता है। ये तरंगे इतनी ज्यादा तेज और गतिशील होती है कि युवक और युवती इसके असर में आनंद में भरे रहते हैं। इस समय वह किसी तरह के अच्छे या बुरे परिणाम को न सोचते हुए सिर्फ संभोग सुख के लिए बेचैन रहते हैं।
होंठ शरीर के बहुत ही कोमल अंग होते हैं इसी वजह से कोमल भावों को और कोमल प्रभाव डालने में इस अंग की तरंगे बहुत ज्यादा शक्तिशाली होती है। जिस समय स्त्री और पुरुष एक-दूसरे को चुम्बन करते हैं उस वक्त उनके सांस लेना और सांस छोड़ना, उनकी आंखों की रोशनी, शारीरिक ऊर्जा सब कुछ कोमल भावों और प्रभावों से व्याप्त रहता है तथा इन भावों प्रभावों का आदान-प्रदान स्त्री और पुरुष में होता है।
इन्हीं के द्वारा आपस में प्यार, भरोसा और उत्तेजना की बढ़ोतरी होती है। यहां तक कि स्त्री और पुरुष पर इसका असर इतना पड़ता है कि उनमें अगर कोई बुराई होती है तो दूसरे को उसकी वह बुराई भी अच्छी लगती है।
स्त्री और पुरुषों की जिंदगी में नई क्रांति पैदा करने में चुम्बन को सबसे पहला माध्यम माना जाता है। आनंद को महसूस करने का मुख्य द्वार चुम्बन ही होता है।
तृतीय अध्याय : चुम्बन विकल्प प्रकरण तृतीय अध्याय : चुम्बन विकल्प प्रकरण Reviewed by Admin on 8:54 AM Rating: 5

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