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प्रथम अध्याय - वरण संविधान प्रकारण

श्लोक-1. सवर्णायामनन्यपूर्वायां शास्त्रतोऽधिगतायां धर्मोऽर्थः पुत्राः संबंधः पक्षवृद्धिरनुपस्कृता रतिश्च।।1।।
अर्थ : कन्या की शादी का विधान बताते हुए वात्स्यायन कहते हैं- कि जो युवक अपनी ही जाति की युवती के साथ शास्त्रों के नियम के अनुसार विवाह करता है, उसे बिना किसी कष्ट के धर्म, धन और पुत्र की प्राप्ति होती है। ऐसे पुरुष को पत्नी से बेहद प्यार मिलता है, उसकी सेक्स पॉवर बढ़ती है और सेक्स का भरपूर आनन्द मिलता है।

श्लोक-2. तस्मात्कन्यामभिजनोपेतां मातापितृमतीं त्रिवर्षत्प्रभृति न्यूनवयसं श्र्लघ्याचारे धनवति पक्षवति कुले संवंधिप्रिये संबंधिभिराकुले प्रसूतांप्रभूतमातृपितृपक्षांरूपशीललक्षणसंपन्यनाधिकाविनष्टदन्तखकर्णकेशाक्षि-स्तृनीमारोगिप्रकृतिशरीरां तथाविध एवं श्रुतवाञ्शीलयेता।।2।।
अर्थ : शास्त्रों में कहा गया है कि युवक को ऐसी लड़की से शादी करनी चाहिए जो उसकी जाति की हो और उसमें उस जाति के सभी गुण मौजूद हों, माता-पिता का साथ हो, लड़की उससे तीन साल छोटी हो, सुशील-शलीन बर्ताव करने वाली हो, अमीर घर की हो, जिसका परिवार प्रतिष्ठित और लोकप्रिय हो, जिसके रिश्तेदार भी ऐसे ही हो, माता-पिता के अलावा घर में अन्य सदस्य भी हो और उनमें गहरा प्रेम हो, जो लड़की स्वयं शील व सुन्दरता संपन्न हो जिसके दांत, नाखून, कान, बाल, आंखे, स्तन न बहुत बड़े हो और न ही बहुत छोटे।

श्लोक-3. यां गृहीत्वा कृतिनमात्मानं मन्येत न च समानैर्निन्द्येत तस्यां प्रवृत्तिरिति घोटकमुखः।।3।।
अर्थ : आचार्य घोटकमुख कहते हैं कि जिस कन्या से शादी करके पुरुष अपने को धन्य समझे और जिससे शादी करने पर सदाचारी मित्रगण तारीफ करें, बुराई न करें, ऐसे ही लड़की से शादी करनी चाहिए।

श्लोक-4. तस्या वरणे मातापितरौ संबंधिनश्र्च प्रयतेरन्। मित्त्राणि च गृहीतवाक्यान्यभयसंबद्धानि।।4।।
अर्थ : इस तरह के गुणों से सम्पन्न कन्या को विवाह के लिए माता-पिता तथा सगे-संबंधियों को कोशिश करनी चाहिए। दोनों तरफ के दोस्तों को भी इस संबंध को बनाने के लिए कोशिश करनी चाहिए।

श्लोक-5. तान्यन्येषां वरयितृणां दोषान्प्रत्यक्षानागमिकांश्र्च श्रावयेयुः। कौलान्पौरुषेयानश्र्चभिप्रायसंवर्धकांश्र्चः।।5।।
अर्थ : ज्यादातर दोस्तों की यही प्रवृत्ति होती है कि वे अपने दोस्त की कुलीनता, उसके पौरुष, शील आदि की तारीफ करते हैं और लड़की के घर वालों से उसके कार्य और गुणों के बारे में बताते हैं। वे अपने दोस्त से उन्हीं के प्रत्यक्ष तथा आगामी गुणों का बखान करते हैं जिन्हें लड़की की मां और घर वाले पसंद करते हैं।

श्लोक-6. दैवचिन्तकरुपश्र्च शकुननिमित्तग्रहलग्नबललक्षेणदर्शनेन नायकस्य भविष्यन्तमर्थसंयोगं कल्याणमनुवर्णयेत्।।6।।
अर्थ : लड़के के घर से सिखाकर भेजा गए व्यक्ति को लड़की के घर जाकर लड़का का जन्मकुण्डली, ग्रहों तथा लग्न स्थान के अनुसार उसकी लड़की के लिए शादी के योग्य बताएं। लड़के की मां को लड़के की शादी से होने वाले महान आर्थिक लाभ और उसके कल्याण का अनुभवासिद्ध वर्णन करें।

श्लोक-7. अपरे पुनारस्यान्यतो विशिष्टेन कन्यालाभेल कन्यामातरमुन्मादयेयुः।।7।।
अर्थ : मां के पास भेजे जाने वाले व्यक्ति को चाहिए कि लड़की की मां को लड़के के बारे में बढ़ा-चढ़ा कर कहें। उसे कहें कि आप अपनी लड़की की शादी जिस लड़के से करना चाहते हैं वह लड़का आपकी लड़की के लिए बिल्कुल ठीक है। उसकी मां को समझाते हुए कहे कि आपको अपनी लड़की की शादी उसी लड़के से करना चाहिए क्योंकि वही लड़का आपकी लड़की के लिए अच्छा जीवन साथी बन सकता है।

श्लोक-8. दैवनिमित्तशकुनोपश्रुतीनामानुलोम्येन कन्यां वरयेद्दद्याच्चा।।8।।
अर्थ : लड़का-लड़की के माता-पिता को चाहिए कि वे लड़का-लड़की को दैव तथा ग्रह नक्षत्र की अनुकूलता देखकर षष्ठ और अष्ट योगों को बचाकर और निनित्त तथा शकुन पूछकर आधी रात के वक्त की उपश्रुति ग्रहण कर लड़का-लड़की की शादी कराएं।

श्लोक-9. न यद्दच्छया केवलमानुषायेति घोटकमुखः।।9।
अर्थ : आचार्य घोटकमुख का मानना है कि केवल लड़का-लड़की के माता-पिता को ही अपनी इच्छा से विवाह तय नहीं करना चाहिए बल्कि परिवार और संबंधियों की सलाह लेकर ही शादी तय करनी चाहिए।

श्लोक-10. सुप्तां रूदतीं निष्क्रान्तां परणे परिवर्जयेत्।।10।।
अर्थ : लड़के को ऐसी लड़की से शादी नहीं करनी चाहिए जो अधिक सोती है, झगड़ालू हो, जल्दी रोने वाली हो, अधिक घूमने वाली हो और परिवार में झगड़ा कराने वाली हो।

श्लोक-11. अप्रशस्तनामधेयां च गुप्तां दत्तां घोनां पृषतामृषभां विनतां विकटां विमुण्डां शुचिदूषितां सांकरिकीं राकां फलिनीं मित्त्रां स्वनुजां वर्षकरीं च वर्जयेत्।।11।।
अर्थ : ऐसी लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहिए जिसके नाम भद्दे व अटपटे हो। ऐसी लड़की जिसे लोगों के बीच बैठना अच्छा नहीं लगता, अकेली रहना पसंद करती है, भूरे बाल हो, सफेद दाग हो, बड़ी नितम्ब (हीप्स) हों, गर्दन झुकी हो, जिसका शरीर पुरुष के समान तगड़ा एवं हष्ट-पुष्ट हो, सिर में कम बाल हो, जिसमें लज्जा व शर्म का भाव न हो, गूंगी हो, जिसे बचपन से जानते हो, पूरी तरह युवती नहीं हुई हो, जिसके हाथ-पैर पसीजते हो आदि। इस तरह के अवगुणों वाली लड़की के साथ शादी नहीं करनी चाहिए।

श्लोक-12. नक्षत्राख्यां नदीनाम्नीं च गर्हिताम्। लकाररेफोपान्तां च वरणे परिवर्जयेत्।।12।।
अर्थ : ऐसी लड़की से भी शादी नहीं करनी चाहिए जिसका नाम नक्षत्र, नदी या पेड़ के नाम पर हो। जिसके नाम के अंत में ‘ल’ या ‘र’ अक्षर हो उससे भी शादी नहीं करनी चाहिए।

श्लोक-13. यस्यां मनश्र्चक्षुषोर्निबन्धस्तस्यामृद्धिः। नेतरामाद्रियेत। इत्येके।।13।।
अर्थ : कुछ ज्योतिष शास्त्रों का कहना है कि जिस लड़की से लड़के की आंखे और मन मिल जाए उससे विवाह करने में सुख और आनन्द की वृद्धि होती है। यदि शादी करने वाली लड़की से मन और आंखें न मिलती हो तो उस लड़की से शादी नहीं करनी चाहिए।

श्लोक-14. तस्मात्प्रदानसमये कन्यामुदारवेषांस्थापयेयुः। अपराह्णिकंच। नित्यंप्रासाधितायाः सखीभिः सह क्रीडा। यज्ञविवाहादिषु जनसंद्रावेषु प्रायत्निकं दर्शनम्। तथोत्सवेषु च। पण्यसधर्मत्वात्।।14।।
अर्थ : यदि लड़की युवती हो जाए और शादी के योग्य हो गई हो तो उसके मां-बाप को चाहिए कि उसे सुन्दर वस्त्र पहनाये और सजने सवंरने दें। युवती होने पर लड़की को सज-संवरकर शाम के समय अपनी सहेलियों के साथ बागों में खेलने जाना चाहिए। मां-बाप का कर्तव्य है कि जब लड़की युवती हो जाए तो उसे शादी, पार्टी, उत्सवों और यज्ञों में अच्छे कपड़े पहनाकर और साज-सवार कर ले जाएं। इस तरह सजने-संवरने से लड़की की ओर लड़के का आकर्षण बढ़ेगा। जिस तरह सजावट को देखकर लोग उस ओर आकर्षित होते हैं उसी तरह लड़की युवती होने पर जब सजती-संवरती है तो लड़के उसकी ओर आकर्षित होते हैं।

श्लोक-15. वरणार्थमुपगतांश्र्च भद्रदर्शनान प्रदक्षिणवाचश्र्च तत्संबन्धिसंगतान् पुरुषान्मंगलैः प्रतिगृह्नीयुः।।15।।
अर्थ : लड़की के माता-पिता को चाहिए कि जब लड़के के घर वाले लड़की को देखने आए तो उसे अच्छे-अच्छे पदार्थों से उनका स्वागत करना चाहिए।

श्लोक-16. कन्यां चैषामलंकृतामन्यापदेशेन दर्शयेयुः।।16।।
अर्थ : माता-पिता को चाहिए कि वह अपनी लड़की को अच्छे वस्त्र पहनाकर, आभूषण पहना कर और साज-सवांर कर लड़के और उसके परिवार वाले को दिखाएं।

श्लोक-17. दैवं परीक्षणं चावधिं स्थापयेयुः। आ प्रदाननिश्र्चयात्।।17।।
अर्थ :लड़की के माता-पिता को चाहिए कि लड़के से शादी तय करने से पहले अपने रिश्तेदार, दोस्तों से सलाह लेने के लिए लड़के के माता-पिता से समय मांगे। इसके बाद लड़के के परिवार के बार में जब सब कुछ पता लग जाए और अपने बराबर का लगे तो ही उससे अपनी लड़की की शादी तय करनी चाहिए।

श्लोक-18. स्नानादिषु नियुज्यमाना वरयितारः सर्व भविष्यतीत्युक्त्वा न तदहरेवाभ्युपगच्छेयुः।।18।।
अर्थ : अगर स्नान आदि के लिए वरण करने वाले अनुरोध करें तो उसी रोज स्वीकार न करें। उनसे सिर्फ इतना कह दें कि देखिए सब कुछ सही समय पर हो जाएगा।

श्लोक-19. देशप्रवृत्तिसात्म्याद्वा ब्राह्मप्राजापत्यार्षदैवानामन्यतमेन विवाहेन शास्त्रतः परिणयेत्। इति वरण विधानम्।।19।।
अर्थ : भारतीय संस्कृति के मुताबिक चार प्रकार की शादियां होती हैं- ब्राह्म, प्राजापत्य, आर्ष तथा दैव। इन चारों में से किसी भी एक के द्वारा शास्त्रों के अनुसार लड़की के साथ शादी कर लेनी चाहिए।

श्लोक-20. भवन्ति चात्र श्र्लोकाः
समस्याद्याः सहक्रीडा विवाहाः संगतानि च। समानैरेव कार्याणि नोत्तमैर्नपि वाधमः।।20।।
अर्थ : लड़की को अपने समान उम्र के लड़के के साथ खेलना चाहिए, समान उम्र के लड़के के साथ दोस्ती करनी चाहिए और युवती होने पर योग्य व समान उम्र वाले के साथ ही विवाह करना चाहिए। अधिक उम्र के लड़कों के साथ दोस्ती और अधिक उम्र के पुरुष के साथ विवाह नहीं करना चाहिए।

श्लोक-21. कन्यां गृहीत्वा वर्तेत प्रेष्यवद्यत्र नायकः। तं विद्यादुच्चसंबंधं परित्यक्तं मनस्विभिः।।21।।
अर्थ : लड़के को अपने समान हैसियत वाले लड़की के साथ ही शादी करनी चाहिए क्योंकि जो पैसे या अन्य लालच वश अपने से अधिक अमीर लड़की से शादी करता है उसके साथ नौकर के समान व्यवहार किया जाता है। किसी छोटे घर के लड़के को बड़े घर की लड़की या किसी छोटे घर की लड़की को अधिक बड़े घर के लड़के के साथ शादी नहीं करनी चाहिए। इस तरह के संबंधों को उच्च संबंध कहा जाता है। अक्सर बुद्धिमान लोग इस तरह का संबंध कभी नहीं करते।

श्लोक-22. स्वामिवद्विचरेद्यत्र बांधवैः स्वैः पुरस्कृतः। अश्र्लाघ्यो हीनसंबंधः सोऽपि सद्धिर्विनिन्द्यते।।22।।
अर्थ : अक्सर कुछ पुरुष निर्धन घर की लड़की के साथ शादी करके उस पर मालिक की तरह शासन करता है। ऐसे घरों में निर्धन घर की लड़की नौकरानी बनकर रहती है। इस तरह का वैवाहिक संबंध हीन संबंध कहलाता है। जो लोग बुद्धिमान होते हैं वे इस तरह के संबंधों से बचते हैं।

श्लोक-23. परस्परसुखास्वादा क्रीडा यत्र प्रयुज्यते। विशेषयन्ती चान्योन्यं संबंधः स विधीयते।।23।।
अर्थ : जिस शादी से पति-पत्नी को समान आनन्द की अनुभूति हो और दोनों एक-दूसरे से प्यार करते हों वही शादी करने लायक होते हैं।

श्लोक-24. कृत्वापि चोच्चसंबंधं पश्चाज्ज्ञैतिषु संनमेत्। न त्वेव हीनसंबंधं कुर्यात्सद्भिर्विनिन्दितम्।।24।।
अर्थ : अपने से ऊंचा संबंध स्थापित करने पर अपने रिश्तेदारों से दबना पड़ता है, उनके सामने झुकना पड़ता है। हीन संबंध को भी सज्जन लोग बुरा मानते हैं।
वात्स्यायन विवाहिक जीवन को तरजीह देता है। उसने उन्मुक्त सहवास व उच्छृंखल कामुकवृत्तियों तथा व्यभिचार का निरेध करने के लिए कन्यावरण का विधान शास्त्र विधि से तथा सजातीय में धर्म, अर्थ की वृद्धि के लिए शादी करने के लिए बताया है।
कामना से प्रवृत्त ब्राह्मण के चारों वर्ण, क्षत्रिय के ब्राह्माण के अलावा तीन वर्ण, वैश्य के दो वर्ण तथा शूद्र के एक वर्ण की कन्या से विवाह करना चाहिए। लेकिन मनु के इस नियम का खण्डन करते हुए याज्ञवल्क्य कहते हैं कि नैतन्मम मतम यह विधान मुझे स्वीकार नहीं है, क्योंकि श्रुति का कहना है कि तज्जाया जाया भवति यदन्यां जायते पुनः जाया वहीं कही जा सकती है जिसमें पति पुत्ररूप से पुनः उत्पन्न हो।
इति श्रीवात्स्यायनीये कामसूत्रे सांप्रयोगिके तृतीयेऽधिकरणे वरणविधानं संबंधनिश्र्चयश्र्च प्रथमोऽध्यायः।।
प्रथम अध्याय - वरण संविधान प्रकारण प्रथम अध्याय - वरण संविधान प्रकारण Reviewed by Admin on 10:47 PM Rating: 5

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