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द्वितीय अध्याय - कन्याविस्त्राम्भण प्रकरण

श्लोक-1. संगतयोस्त्रिरात्रमध शय्या ब्रह्मचर्य क्षारलवण र्जमाहारस्तथा सप्ताहं सतूर्यमंगलस्त्रानं प्रसाधनं सहभोजनं च प्रेक्षा संबंधिनां च पूजनम्। इति सार्ववर्णकम्।।1।।
अर्थ : युवक-युवती की शादी हो जाने के बाद पति-पत्नी को शादी के तीन रात तक जमीन पर साधारण विस्तर पर सोना चाहिए और पति-पत्नी दोनों को ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना चाहिए। भोजन में रसयुक्त पदार्थ तथा नमकीन चीजों का सेवन नहीं करना चाहिए। पति-पत्नी दोनों को एक सप्ताह तक मंगल स्नान करना चाहिए और उसे वस्त्र आभूषणों से सज-सवंर कर रहना चाहिए। दोनों को भोजन आदि में साथ रहना चाहिए। अपनों से बड़ों का आदर और सम्मान करना चाहिए। शादी के बाद पति-पत्नी के लिए बनाए गए यह नियम चारों वर्ण के लिए हैः- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र।

श्लोक-2. तस्मित्रेतां नि श विजने मृदुभिरुप्रचारैरुप्रक्रमेता।।2।।
अर्थ : शादी के बाद पति को चाहिए कि वह अपनी पत्नी को रात के एकांत स्थान पर कोमल उपहारों द्वारा अपनी ओर आकर्षित करें।

श्लोक-3. त्रिरात्रमवचनं हि स्तम्भभिव नायकं पश्यन्ती कन्या निविद्येत परिभवेच्च तृतीयामिव प्रकृतिम्। इति बाभ्रवीयाः।।3।।
अर्थ : बाभ्रवीय आचार्यों का कहना है कि शादी के पहले तीन रातों में अगर पति यदि पत्नी से बाते न करें, उसे स्पर्श न करें, उसे प्रेम भरी निगाहों से न देखें और चुप-चाप कमरे में पड़ा रहे तो इससे पत्नी दुखी हो जाती है और पति को नपुंसक मानने लगती है। उसके मन में अपने पति के प्रति सम्मान की भावना भी कम होने लगती है।

श्लोक-4. उपक्रमेत विस्त्रम्भयेच्च, न तु ब्रह्मचर्यमतिवर्तेत। इति वात्स्यायनः।।4।।
अर्थ : वात्स्यायन अपने कामसूत्र में लिखते हैं कि शादी के पहले तीन रातों में पति यदि पत्नी के प्रति प्यार का प्रदर्शन करता है तो पत्नी के मन में सम्मान और विश्वास बढ़ता है। लेकिन पति को अपने पत्नी के बीच ब्रह्मचर्य का तीन रातों तक पालन करते रहना चाहिए।

श्लोक-5. उपक्रममाणश्च न प्रसह्य किंचिदाचरेत्।।5।।
अर्थ : शादी के तीन रात पत्नी के साथ प्रेम प्रदर्शन करने के क्रम में पत्नी को जबरदस्ती चुंबन और आलिंगन नहीं करना चाहिए।

श्लोक-6. कुसुमसधर्माणि हि योषितः सुकुमारोपक्रमाः। तास्त्वनधिगतविश्वासैः प्रसभमुपक्रम्यमाणाः संप्रयागद्वेषिण्यो भवन्ति। तस्मात्साम्नैवोपचरेत्।।6।।
अर्थ : स्त्री फूल के समान कोमल और नाजुक होती है। इसलिए उसके साथ बड़े प्यार और कोमलता से व्यवहार करना चाहिए। पति को तब तक अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती चुंबन या आलिंगन नहीं करना चाहिए जब तक उसके दिल में पूर्ण विश्वास न बन जाए। शादी के बाद पति-पत्नी दोनों को एक-दूसरे को समझना चाहिए क्योंकि जब तक पत्नी को अपने पति पर यकीन न हो जाए तब उसके साथ कोई भी काम करना बलात्कार ही होता है और इससे पत्नी सेक्स से चिढ़ जाती है। अतः पति को पत्नी के सहमति और इच्छा होने पर ही अलिंगन, चुंबन और सेक्स संबंध बनाना चाहिए।

श्लोक-7. युक्त्यापि तु यतः प्रसरमुपलभेत्तेनैवानु प्रविशेत्।।7।।
अर्थ : सेक्स संबंध के लिए पत्नी से प्यार से बाते करें, धीरे-धीरे उसके अंगों को स्पर्श करके उसे इसके लिए तैयार करना चाहिए और जैसे ही मौका मिले या उसकी सहमती मिले वैसे ही उसके अंगों को शिथिल करके आलिंगन करना चाहिए।

श्लोक-8. तत्प्रियेणालिंगनेनाचरितेन नातिकाल्वात्।।8।।
अर्थ : इस तरह मौका मिलने पर बड़े प्यार के साथ स्त्री को आलिंगन करना चाहिए और सेक्स संवंध बनाना चाहिए लेकिन ज्यादा देर तक आलिंगन नहीं करना चाहिए।

श्लोक-9. पूर्वकायेण चोपक्रमेत्। विषह्यत्वात्।।9।।
अर्थ : शुरुआत में पत्नी से ज्यादा परिचय न होने की वजह से आलिंगन छाती से ऊपरी अंगों का करना चाहिए, नाभि आदि नीचे के अंगों का नहीं।

श्लोक-10. दीपालोके विगाढयौवनायाः पूर्वसंस्तुतायाः। बालाया अपूर्वायाश्चन्धकारे।।10।।
अर्थ : यदि विवाह से पहले पत्नी से जान-पहचान हो और वह उन्मत्तयौवना हो तो दीपक के प्रकाश में आलिंगन करना चाहिए। यदि पति-पत्नी के बीच विवाह से पहले जान-पहचान न हो और उसका अप्राप्त यौवन हो तो अंधेरे में आलिंगन करना चाहिए।

श्लोक-11. अंगीकृतपरिष्वंगायाश्च वदनेन ताम्बूलदानम्। तदप्रपिपद्यमानां सान्त्वनैर्वाक्यैः शपथैः प्रतियाचितैः पादपतनैश्च ग्राहयेत्। व्रीडायुक्तापि योषिदत्यन्तक्रुद्धापि न पादपतनममतिर्वते इति सार्वत्रिकम्।।11।।
अर्थ : आलिंगन करने के बाद जब दोनों के मन से लाज और संकोच दूर हो जाए तो पति को चाहिए कि वह अपने मुंह में एक पान रखें और एक पान पत्नी को खाने को दें। यदि वह पान लेने से इंकार करे तो उसे बड़े प्यार से अनुरोध करें और पान लेने के लिए कहें। यदि इससे भी वह पान लेने से मना करे तो उसके पैर में गिरकर उसे पान खाने का अनुरोध करें।

श्लोक-12. तद्दानप्रसंगेण मृदु विशदमकाहलमस्याश्चुम्बनम्।।12।।
अर्थ : जब पत्नी पान लेने के लिए तैयार हो जाए तो प्यार से उसे पान देते हुए चुंबन करें।

श्लोक-13. तत्र सिद्धामालापयेत्।।13।।
अर्थ : यदि चुंबन लेने पर चेहरा खिल उठे और होठों पर मुस्कुराहट फैल जाए तो समझना चाहिए कि उसे अच्छा लगा है। इसके बाद उससे बाते करें।

श्लोक-14. तच्छुवणार्थ यत्किंचिदल्पाक्षराभिधेयमजानत्र्निव पृच्छेत्।।14।।
अर्थ : पत्नी से बाते करते हुए यदि ऐसा महसूस हो कि पत्नी उसकी बातों में दिलचस्पी ले रही है तो बीच में किसी अन्जान की तरह थोड़े से शब्दों में कुछ पूछे।

श्लोक-15. तत्र निष्प्रतिपत्तिमनुद्वेजयन्सान्त्वनायुक्तं बहुश एवं पृच्छेत्।।15।।
अर्थ : यदि पत्नी उस सवालों के अर्थ न बता पाए या जवाब न दे तो उससे प्यार के साथ यह बार-बार पूछे।

श्लोक-16. यत्राप्यवदन्तीं निर्बध्नीयात्।।16।।
अर्थ : प्यार के साथ बार-बार अनुरोध करने पर भी जब वह कोई जवाब न दे तो उस जवाब के लिए अधिक जोर न दें। अक्सर पहली रात में लड़कियां अधिकतर उन्हीं सवालों का जवाब देना पसंद करती हैं जिसमें केवल ‘हां’ या ‘नां’ बोल सकें।

श्लोक-17. सर्वा एवं कि कन्याः पुरुषेन प्रयुज्यमानं वचनं विपहन्ते। न तु लघुमिश्रामपि वाचं वदन्दि। इति घोटकमुखः।।17।।
अर्थ : आचार्य घोटकमुख के अनुसार सभी नवविवाहित लड़कियां पुरुष की हर बात को खामोशी से सुनती जाती है लेकिन किसी भी प्रकार का कोई जवाब नहीं देती।

श्लोक-18. निर्बध्यमाना तु शिरःकम्पेन प्रतिवचनानि योजयेत्। कलहे तु न शिरः कम्पयेत्।।18।।
अर्थ : पति के पूछने पर नवविवाहित लड़कियां अक्सर हां या न में जवाब देती हैं। यदि पूछने पर वह कोई जवाब न दें तो उस पर क्रोधित नहीं होना चाहिए क्योंकि उसके बाद वह कोई जबाव भी नहीं देती।

श्लोक-19. इच्छसि मां नेच्छसि वा किं तेऽहं रुचितो न न रुचितो वेति पृष्टा चिरं स्थित्वा निर्बध्यमाना तदानुकूल्येन शिराः कम्पयेय्। प्रपञ्च्यमाना तु विवदेत्।।19।।
अर्थ : तुम मुझे चाहती हो या नहीं, मैं तुम्हें पसन्द हूं या नहीं। इस तरह पूछे जाने पर पत्नी देर तक चुप रहकर फिर सिर हिलाकर अनुकूल जवाब देती है तथा यदि क्रोधित हुई तो झगड़ पड़ती है।

श्लोक-20. संस्तुता चेत्सखीमनुकूलामुभयतोऽपि विस्त्रब्धां तामन्तरा कृत्वा कथां योजयेत्। तस्मित्र्नधोमुखी विहसेत्। तां चातिवादिनीमधिक्षिपेद्विवदेच्च। सा तु परिहासार्थमिदमनयोक्तमिति चानुक्तमपि ब्रूयात्। तत्र तामपनुद्य प्रतिवचनार्थमभ्यर्थ्यमाना तूष्णीमासीत। निर्वध्यमाना तु नाहमेवं ब्रवीमीत्यव्यगक्ताक्षरमनवसितार्थ वचनं ब्रूयात्। नायकं च विहसन्ती कदाचित्कटाक्षैः प्रेक्षेत। इत्यालापयोजनम्।।20।।
अर्थ : पति-पत्नी से बाते करने के लिए पत्नी को सहेली का सहारा लेना चाहिए। पति जब कुछ कहता है तो उसे सुनकर पत्नी नीचे मुंह करके हंसती है। पति की बात सुनकर पत्नी अपनी सहेली को धमकायेगी कि तू वहुत वकवास करने लगी है, इस तरह से उसके साथ विवाद करेगी। सहेली भी उसका मजाक उड़ाने के लिए उसके पति से झूठ-मूठ बोलेगी कि मेरी सहेली आप से यह कह रही है। इधर अपनी सहेली से कहेगी कि तुम्हारा पति यह कह रहा है, तू क्यों नहीं बोलती। इस तरह पति तथा सहेली से तंग आकर पत्नी दबे शब्दों में कहती है कि तुम मुझे तंग करोगी तो मैं नहीं बोलूंगी। साथ ही पति की तरफ मुस्कुराती हुई तिरछी नजरों से देखती है। इस तरह दोनों के बीच जो बातचीत शुरू होती है वह पति-पत्नी की पहली बातचीत होती है।

श्लोक-21. एवं जातपरिचय चानिर्वदन्ती तत्समीपे याचितं ताम्बूलं विलेपनं स्त्रजं निदध्यात। उत्तरीये वास्य निबध्यीयात्।।21।।
अर्थ : इस तरह आपस में पति-पत्नी के बीच परिचय हो जाने पर पत्नी को चाहिए कि वह बिना कुछ बोले पति के पास खामोश से पान, चन्दन तथा माला रख दें।

श्लोक-22. तथायुक्तामाच्छुरितकेन स्तनमुकुलयोरुपरि स्पृशेत्।।22।।
अर्थ : जब पत्नी आपके पास पान, चन्दन तथा माला रख रही हो तो पति को चाहिए कि वह पत्नी के स्तनों की घुण्डियों को प्यार से स्पर्श करें।

श्लोक-23. वार्यमाणश्च त्वमपि मां परिष्वजस्व ततो नैवमाचरिष्यामीति स्थित्या परिष्वञ्जयेत्। स्वं च हस्तमानाभिदेशात्प्रलसार्य निवर्तयेत्। क्रमेण चैनामुत्संग मारोप्याधिकमधिकमुक्रमेत्। अप्रतिपद्यमानां च भीषयेत्।।23।।
अर्थ : यदि पत्नी स्तनों को स्पर्श करने से रोकती है तो उससे बोलना चाहिए कि तुम मेरे शरीर को स्पर्श या आलिंगन करो मैं कुछ नहीं कहूंगा। इसके बाद पत्नी का आलिंगन करें और अपने हाथ को स्तनों से सहलाते हुए नाभि के नीचे तक फैलाएं और फिर हटा लें। इसके बाद पत्नी को अपनी गोद में बैठने को कहें और फिर धीरे-धीरे आगे की क्रिया करें। यदि पत्नी गोद में बैठने या यह सब करने से मना करे तो उसे बातों से भयभीत भी करा देना चाहिए।
श्लोक-24. अहं खलु तव दन्तपदान्यधरे करिष्यामि, स्तनपृष्ठे च नखपदम्। आत्मनश्च स्वयं कृत्वा त्वया कृतमिति ते सखीजनस्य पुरतः कथयिष्यामि। सा त्वं किमत्र वक्ष्यसीति वालबिभीषिकैर्बालप्रत्यायनैश्च शनैरेनां प्रतारयेत्।।24।।
अर्थः पत्नी जब छोड़छाड़ या अंगों को स्पर्श करने से मना करे तो उससे कहे कि मैं तुम्हारे होठों पर दांतों के निशान कर दूंगा, स्तनों पर नाखून गड़ा दूंगा, अपने अंगों में स्वयं नाखून लगाकर तेरी सहेलियों से कहूंगा कि तुम्हारी सहेली ने ये घाव कर दिए हैं। तब बता तू क्या करेगी? इस तरह बच्चों की तरह डरा-धमकाकर धीरे-धीरे पत्नी को मनचाहे काम में लगा ले।

श्लोक-25. द्वितीयस्यां तृतीयस्यां च रात्रौ किञ्चदधिकं विस्त्रम्भितां हस्तेन योजयेत्।।25।।
अर्थ : इस तरह पहली रात में पति को अपने पत्नी के मन में विश्वास बनाना चाहिए और फिर दूसरी-तीसरी रात उसकी जांघों पर हाथ फेरना शुरू कर देना चाहिए।

श्लोक-26. सर्वांगिकं चुंबनमुपक्रमेत।।26।।
अर्थ : जांघों आदि पर हाथ फेरने पर जब स्त्री कुछ न बोले तो धीरे-धीरे सभी अंगों को सहलाना चाहिए और चुंबन करना चाहिए।

श्लोक-27. ऊर्वोश्चोपरि विन्यस्तहस्तः संवाहनक्रियायां सिद्धायां क्रमेणोरुमूलमपि संवाहयेत्। निवारिते संवाहने को दोष इत्याकुलयेदेनाम्। तच्च स्थिरीकुर्यात्। तत्र सिद्धाया गुह्यदेशाभिमर्शनम्।।27।।
अर्थ : जब पत्नी स्पर्श से आनन्द महसूस करने लगे तो धीरे-धीरे जांघों के ऊपर हाथ रखकर हाथ फेरना आरम्भ कर दें। जांघों के ऊपर हाथ रखकर ऊपर नीचे हाथों से सहलाने के बाद जांघों के जोड़ में हाथ ले आए। कभी पत्नी ऐसा करने से रोके तो कहे कि ऐसा करने में क्या जाता है। जांघों को सहलाने के साथ ही आलिंगन तथा चुम्बन करते हुए उसे बेचैन बनाना चाहिए। बीच-बीच में सहलाना बन्द कर देना चाहिए। जब जांघों को सहलाते हुए स्त्री किसी तरह का निषेध न करके उसमें रुचि लेने लगे तब आहिस्ता से उसके गुप्तांग तक हाथ पहुंचा देना चाहिए।

श्लोक-28. रशनावियोजनं नीवीविस्त्रंसनं वसनपरिवर्तन मूरुमूलसंवाहनं च। एते चास्यान्यापदेशाः। युक्तयन्त्रां रञ्जयेत्। न त्वकाले व्रतखण्डनम्।।28।।
अर्थ : फिर कमर की करधनी सरकाकर साड़ी की गांठ को ढीली कर दे और साड़ी को उलट दे और जांघों को सहलाते रहें। ये सब क्रियाएं पत्नी पर अपना प्रेम तथा विश्वास जमाने के लिए की जानी चाहिए न कि उच्छूंखल कामातुर बनकर संभोग के समय में स्त्री की खुशी का ख्याल करते हुए असमय में ब्रह्मचर्य भंग करने के लिए।

श्लोक-29. अनुशिष्याच्च। आत्मानुरागं दर्शयेत्। मनोथांश्च पूर्वकालिकाननुवर्णयेत्। आयत्यां च तदानुकूल्येन प्रवृत्तिं प्रतिजानीयात्। सपत्नीभ्यश्च साध्वसमवच्छिन्द्यात्। कालेन च क्रमेण विमुक्तकन्याभावा- मनुद्वेजयत्र्नुपक्रमेत। इति कन्याविस्त्रम्भणम्।।29।।
अर्थ : पति को चाहिए कि सुहागरात से पहले तीन रातों में अपनी पत्नी को सेक्स की भी शिक्षा दें।
पति को चाहिए कि सुहागरात के पहले तीन रातों में पत्नी पर प्रेम जाहिर करते हुए पिछले मनोरथों, मनसूबों की बातें भी करनी चाहिए। उसे चाहिए कि पत्नी के मन में विश्वास दिलाना चाहिए कि मैं जीवन भर तुम्हारा साथ दूंगा, मैं तुम्हारे अलावा किसी और स्त्री की ओर कभी नहीं देखूंगा। इस तरह का विश्वास दिलाना चाहिए।

श्लोक-30. भवन्ति चात्र श्लोकाः-
एवं चित्तानुगो बालामुपायेन प्रसाधयेत्। तथास्य सानुरक्ता च सुविस्त्रब्धा प्रजायते।।30।।
अर्थ : इस विषय पर प्राचीन आचार्यों का कहना है कि जो व्यक्ति विवाह के पहले तीन रातों में अपनी पत्नी के मन को जानकर अपने प्रेम बंधन में बांध लेता है और अपना पूरा विश्वास बना लेता है तो शुरू से ही पत्नी अनुगामिनी वनकर उसकी सेवा करती रहती है।

श्लोक-31. नात्यन्तमानुलोम्येन न चातिप्रातिलोभ्यतः। सिद्धिं गच्छति कन्यासु तस्मान्मध्येन साधयेत्।।31।।
अर्थ : पुरुषों को हमेशा एक बात याद रखनी चाहिए कि स्त्री को न तो अधिक क्रीतदास बनाकर और न ही अधिक प्रतिकूल होकर स्त्री को अपने वश में करना चाहिए क्योंकि अधिक निर्मल व्यवहार करने से स्त्री अपने को उच्च समझ बैठती है और अधिक सख्त व्यवहार करने से वह जीवन भर डरी सी रहती है। अतः जो समझदार पुरुष होते हैं वह इन दोनों में से बीच का रास्ता अपनाते हैं।

श्लोक-32. आत्मनः प्रीतिजननं योषितां मानवर्धनम्। कन्याविस्त्रम्भणं वेत्ति यः स तासां प्रियो भवेत्।।32।।
अर्थ : पत्नी के मन में अपना प्यार बनाना, पत्नी का सम्मान करना तथा नई विवाहित स्त्री में अपना यकीन बनाना। इन तीनों बातों को जो पुरुष जानता है और समझता है वह स्त्रियों का प्रिय होता है।

श्लोक-33. अतिलञ्जान्वितेत्येवं कन्यामुपेक्षते। सोऽनभिप्रायवेदीति पशुवत्परिभूयते।।33।।
अर्थ : नवविवाहित पुरुष यदि अपनी स्त्री को शर्मीली समझने की भूल करता है वह स्त्री के द्वारा सम्मान प्राप्त करने योग्य नहीं होता।

श्लोक-34. सहसा वाप्युपक्रान्ता कन्याचित्तमविन्दता। भयं वित्रासमुद्वेगं सद्यो द्वेषां च गच्छति।।34।।
अर्थ : नवविवाहित पति-पत्नी के बीच विश्वास एवं प्यार का संबंध बनाए बिना या मनोभावों को समझे बिना ही यदि संभोग करने की कोशिश करता है, वह स्त्री के भय, क्रोध तथा ईर्ष्या द्वेष का पात्र बन जाता है।

श्लोक-35. सा प्रीतियोगमप्राप्ता तेनोद्वेगेन दूषिता। पुरुषद्वेषिणी वा स्याद्विद्विष्टा वा ततोऽन्यगा।।35।।
अर्थ : पति का प्रेम न पाकर पत्नी जलन और घृणा से भर जाती है। फिर तो वह या तो अपने पति की विद्रोहिणी बन जाती है या पराये पुरुष से फंस जाती है।
आचार्य वात्स्यायन का मानना है कि मनोविज्ञान सम्मत है कि शादी के बाद नई दुल्हन को जब तक भली प्रकार आश्वस्त तथा विश्वास्त न कर लिया जाए तब तक वह संभोग करने के लायक नहीं होती, इसीलिए आचार्य ने कन्या विस्त्रम्भण प्रकरण लिखकर अपने बुनियादी विचारों को धर्मशास्त्र, तर्कशास्त्र, मानसशास्त्र तथा लोकशास्त्र का आधार लेकर पल्लवित किया है।
इति श्रीवात्स्यायनीये कामसूत्रे कन्यासम्प्रयुक्त के तृतीयेधिकरणे कन्याविस्त्रम्भणं द्वितीयोऽध्यायः।
द्वितीय अध्याय - कन्याविस्त्राम्भण प्रकरण द्वितीय अध्याय - कन्याविस्त्राम्भण प्रकरण Reviewed by Admin on 11:26 PM Rating: 5

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