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तृतीय अध्याय - बालोपक्रमाः प्रकरण

श्लोक-1. वरणसंविधानपूर्वकमधिगतायां विस्त्रम्भणमुक्तम्।।1।।
अर्थ : या तु व्रियमाण न लभ्यते तत्र गान्ध्रर्वादयश्वत्वारो विवाहाः।
कामसूत्र में बताया गया है कि शास्त्रों के अनुसार चार प्रकार से शादी की जा सकती है और इनमें से किसी भी विधि से शादी कर लेनी चाहिए। जब लड़की शादी करके ससुराल जाती है तो उसे विश्वस्त तथा आश्वस्त बनाने के लिए प्रेम भरे शब्दों का सहारा लेना चाहिए।
शास्त्रों के अनुसार शादी के चार प्रकारों के अतिरिक्त चार और प्रकारों का वर्णन किया गया है जिसे गन्धर्व विवाह कहते हैं- ब्राह्य, अग्नि, दैव, प्रजायत्य। यदि ऊपर के चार प्रकार के विवाहों में से किसी के द्वारा लड़की हासिल न हो तो उसे गन्धर्व के चारों में से किसी एक प्रकार से विवाह कर लेना चाहिए। यदि लड़का-लड़की आपस में शादी के लिए तैयार हों और उनके मां-बाप शादी के लिए तैयार न हों तो लड़का-लड़की को गन्धर्व विवाह के द्वारा शादी कर लेनी चाहिए।

श्लोक-2. धनहीनस्तु गुणयुक्तोऽपि, मध्यस्थगुणो हीनापदेशो वा, साधनो वा प्रातिवेश्यः मातृपितृभ्रातृषु च परतन्त्रः, बालवृत्तिरुचितप्रवेशो वा कन्यामलभ्यत्वात्र्न वरयेत्।।2।।
अर्थ : लड़का-लड़की को न मिलने की वजह के बारे में वात्स्यायन बताते हुए कहते हैं कि जो युवक गुणवान होते हुए भी हीन कुल का है अथवा धनवान होते हुए भी युवती का पड़ोसी है अथवा अपने माता-पिता के अधीन है अथवा जिसमें स्त्री का भाव है तो ऐसे युवक को चाहिए कि वह किसी कुलशील सम्पन्न लड़की से विवाह करने की कोशिश न करें।

श्लोक-3. बाल्यात्प्रभृति चैनां स्वयमेवानुरञ्जयेत्।।3।।
अर्थ : इस तरह से जो प्रेमी-प्रेमिका बचपन से आपस में प्यार करते हों और किसी कारण से उनका विवाह होना संभव न हो तो लड़के के किशोरावस्था से ही लड़की के साथ अपना प्यार बढ़ाते रहना चाहिए।

श्लोक-4. तथायुक्तश्च मातुलकुलानुवर्ती दक्षिणापथे बाल एवं मात्रा च पित्रा च वियुक्तः परिभूतकल्पो धनोत्कर्षादलभ्यां मातुलदुहितरमन्यस्मै वा पूर्वदत्तां साधयेत्।।4।।
अर्थ : जहां युवक प्रायः इसी तरह से लड़की को अनुरक्त बनाकर फिर उससे शादी करते हैं। वह अनुरक्त निम्न है-
दक्षिण देश में जिन बातों की वजह से लोग अपनी लड़कियां नहीं देते उन्हीं हीनताओं से युक्त माता-पिता रहित गरीब लड़का अपने मामा के घर रहकर अमीर मामा की पुत्री को चाहे उसकी सगाई कहीं हो भी गई हो, उससे प्यार बढ़ाकर शादी कर ले।

श्लोक-5. अन्यामपि बाह्यां स्पृहयेत्।।4।।
अर्थ : यदि लड़की लड़के के मामा के गोत्र का न हो तथा अपने गोत्र की न होकर किसी दूसरी जाति की हो तब भी उसे अनुरक्त करके उसके साथ गन्धर्व विवाह कर सकता है।

श्लोक-6. बालायामेवं सति धर्माधिगमे संबंननं श्लाघ्यमिति घोटकमुखः।।5।।
अर्थ : आचार्य घोटकमुख कहते हैं कि यदि कोई लड़का किशोरावस्था से ही किसी लड़की के साथ प्यार करता हो तो उसे वश में करके शादी कर लेना गलत नहीं है।

श्लोक-7. तया सह पुष्पावचयं ग्रथनं गृहकं दुहितृकाक्रीडायोजनं भक्तपानकरणमिति कुर्वीत। परिचयस्य वयसश्चानुरूप्यात्।।6।।
अर्थ : वात्स्यायन के अनुसार लड़की को अनुरक्त करने वाला बच्चा भी हो सकता है और युवक भी। बचपन से ही लड़का द्वारा किसी लड़की को अनुरक्त करने के विषय में वात्स्यायन का कहना है कि बचपन से ही लड़का लड़की के साथ अनेक प्रकार के खेल खेलता है, जैसे- फूल चुनना, फूलों की माला गूंथना, घरौंदा बनाना, गुड़ियों का खेल खेलना, मिट्टी, धूल, भात आदि खाने पीने की वस्तुएं तैयार करना तथा अपनी उम्र और जानकारी के मुताविक अन्य क्रीड़ाएं करने के साथ लड़की को अपने वश में करने की कोशिश करना।

श्लोक-8. आकर्षक्रीडा पट्ट्काक्रीडा मुष्टिद्यूतक्षुल्लकादिद्यूतानि मध्यमाङ्ऴलिग्रहणं षट्पाषाणकादीनि च देश्यानि तत्सात्म्यात्तदाप्तदासचेटिकाभिस्तया च सहानुक्रीडेत।।7।।
अर्थ : बचपन से लड़का लड़की को खुश करने के लिए रस्साकशी, एक-दूसरे के हाथ की अंगुलियों को फंसा पट्टा बांधकर चक्कर लगाना, कोई शर्त लगाकर मुट्ठी बांधकर पूछना कि इसमें क्या है? बीच की बड़ी अंगुली को छिपाकर बुझाना तथा छह कंकड़ियों से खेल, इन देशी खेलों को बचपन में लड़की के साथ खेलता है। बचपन में खेले जाने वाले ये खेल बचपन से ही लड़का द्वारा लड़की को अनुरक्त करने में सहायता करता है।

श्लोक-9. क्ष्वेडितकानि सुनिमीलितकामारब्धिकां लवणवीथिकामनिलताडितकां गोधूमपुञ्जिकामङ्ऴलिताडितकां सखीभिन्यानि च देश्यानि।।8।।
अर्थ : कृष्णफल, आंख मिचौली, क्रीड़ा, नमक की दुकान, दोनों हाथ फैलाकर चारों तरफ घूमना, गेहूं के ढेर में सभी बालक पैसे छोड़कर एक में मिला दें फिर बराबर-बराबर बांट लें, अंगुली से खोटका मारना और अपने-अपने आदि खेल खेलते हैं।
वात्स्यायन ने सामाजिक रीति से अविवाहित लड़की से प्रेम संबंध बनाने के लिए बताया है। वात्स्यायन का कहना है कि यदि युवक और युवती एक-दूसरे से प्यार करते हैं और विवाह करना चाहते हैं लेकिन कुलीनता, विद्वता अथवा सम्पत्ति की कमी होने से पुरुष, स्त्री से शास्त्रों में वर्णित उत्तम विधि से शादी करने में असमर्थ हो तो उसे चाहिए कि वह गान्धर्व, राक्षस आदि निकृष्ट पद्धति से विवाह कर लें। अर्थ यह है कि वह अपनी प्रेमिका को लेकर भागकर शादी कर लें।
वात्स्यायन इस प्रकार के प्रेमियों के लिए कहते हैं, जो लड़का लड़की के परिवार से नीच हो, धनहीन हो, विजातीय हो, उसके पड़ोस में बसता हो और परिवार वालों के नियंत्रण में हो। इस तरह की लड़की से संबंध नहीं बनाना चाहिए। फिर भी यदि कोई लड़का इस तरह कि लड़की से प्यार कर बैठता है और उससे शादी करना चाहता है तो उस लड़के के लिए आवश्यक है कि वह उस लड़की से किशोरावस्था से ही प्रेम संबंध बनाकर रखें।
वात्स्यायन की इस बात से पता चलता है कि प्रेम विवाह की परम्परा भारत में काफी प्राचीनकाल से चली आ रही है। स्मृतियों में भी गान्धर्व, राक्षस, पैशाच विवाह के बारे में बताया गया है।
लड़की-लड़कों में बाल्यावस्था से ही परस्पर प्रेम तथा आकर्षण उत्पन्न करने के लिए जिन बाल क्रीड़ाओं का वर्णन किया हैं उनकी दीर्घकालीन परम्परा का परिचय मिलता है। माला गूंथना, फूल तोड़ना, घरोंदा बनाना आदि क्रीड़ाएं सार्वदेशिक हैं लेकिन आकर्ष क्रीड़ा, पट्टिका क्रीड़ा, मुष्टिद्यूत आदि क्षुल्लकद्यूत और अंगुलि ग्रहण तथा षटपाषणक खेल ऐसे होते हैं जिन्हें विशुद्ध जनपदीय कहा जा सकता है। अक्सर यह क्रीड़ाएं गांव के बच्चे करते हैं।
ऐसी स्थिति में शास्त्रकार का यह मानना अग्राह्या ही नहीं असामाजिक व अव्यवाहारिक सा प्रतीत होता है कि कोई बच्चा किसी बालिका से युवावस्था आने पर विवाह करने के लिए बचपन से ही उसके साथ खेलना शुरु करें। हां युवक ऐसी कोशिश कर सकते हैं।
युवकों के प्रयत्नों का विवरण सूत्रकार इस तरह करते हैं-

श्लोक-10. यां च विश्वास्यामस्यां मन्येत तया सह निरंतरां प्रीति कुर्यात्। परिचयांश्च बुध्येत।।10।।
अर्थ : यदि युवक किसी लड़की को पसंद करता है और उससे प्यार करना चाहता है तो उसे चाहिए कि लड़की की सबसे अच्छी सहेली से जान-पहचान बढ़ाए और उसके द्वारा अपनी प्रेमिका के मन में प्यार बढ़ाने की कोशिश करें।

श्लोक-11. धात्रेयिकां चास्याः प्रियहिताभ्यामधिकमुपगृह्णीयात्। सा हि प्रीयमाणा विदिताकाराप्यप्रत्यादिशन्ती तं तां च योजयितुं शक्नुयात्। अनभिहितापि प्रत्याचार्यकम्।।11।।
अर्थ : लड़के को चाहिए कि वह जिस लड़की से प्यार करता है उसके घर में काम करने वाली लड़की से मेलजोल बढ़ाए। इस तरह काम करने वाली लड़की को अपने बातों के जाल में फंसाने और अपने वश में करने से उसके बिना कुछ कहे ही वह लड़के के हाव-भावों को जानकर उसके प्रेमिका से लड़के को मिला देती है।

श्लोक-12. अविदिताकारापि हि गुणानेवानुरागात्प्रकाशयेत्। यथा प्रयोज्यानुरज्येत।।12।।
अर्थ : इस तरह कामवाली लड़की या उसकी सहेली को अपने वश में करने से वह प्रेमिका के सामने लड़के के गुणों को इस तरह से बताती है कि लड़की उसकी ओर आकर्षित होने लगती है।

श्लोक-13. यत्र यत्र च कौतुकं प्रयोज्यायास्तदनु प्रविश्य साधयेत्।।13।।
अर्थ : प्रेमी को चाहिए कि वह प्रेमिका की इच्छाओं को पूरी करे। प्रेमिका को जो चीज अच्छी लगे वह लाकर दे और जिस चीजों को देखने की इच्छा करे उस चीजों को दिखाने ले जाएं।

श्लोक-14. क्रीडनकद्रव्याणि यान्यपूर्वाणि यान्यन्यासां विरलशो विद्येरंस्तान्यस्या अयत्नेन संपादयेत्।।14।।
अर्थ :अगर प्रेमी-प्रेमिका छोटी उम्र के हों तो प्रेमी को चाहिए कि वह अपनी प्रेमिका को ऐसे खिलौने खरीद कर दे जो कीमती व दुर्लभ होने के साथ ऐसी हो जिन्हें प्रेमिका ने पहले कभी न देखी हो।

श्लोक-15. तत्र कन्दुकमनेकभक्तिचित्रमल्पकालान्तरितमन्यदन्यच्च संदर्शयेत्। तथा सूत्रदारुगवलगजदन्तमयीर्दुहितृका मधूच्छिष्टमृन्मयीश्च।।14।।
अर्थ : प्रेमी को चाहिए कि अपनी प्रेमिका को खुश करने के लिए रंग-बिरंगी गेंदे दिखाए। ऐसी गेंद दिखाए जिस पर चित्र बने हों और वह रंग बदलती हो। इसके अतिरिक्त फुंकनी से साबुन जैसे फेनिल तरल पदार्थों के फुलक्ता बनाकर उड़ाना चाहिए। प्रेमी को अपनी प्रेमिका को ठोरा, सींग, हाथीदांत, मोम और मिट्टी की पुतलियां एवं गुड़ियां देनी चाहिए।

श्लोक-16. भक्तपाकार्थमस्या महानसिकस्य च दर्शनम्।।16।।
अर्थ : प्रेमी को चाहिए कि वह खाना बनाने के लिए अपनी प्रेमिका को रसोईघर दिखाए या फिर खाना पकाने की विधि सिखाए।

श्लोक-17. काष्ठमेढकयोश्च संयुक्तयोश्च स्त्रीपुंसयोरजैडकानां देवकुलगृहकाणां मृद्विदलकाष्ठविनिर्मितानां शुकपरभृतमदसारिकालावकुक्कुटतित्तिरिपञ्जरकाणां च विचित्राकृतिसंयुक्तानां जलभाजनानां च यन्त्रिकाणां वीणिकानां पटोलिकानामलक्तकमनः शिलाहरितालहिङ्ळकश्यामवर्णकादीनां तथा चन्दनकुङ्कमयोः पूगफलानां पत्राणां कालयुक्तानां च शक्तिविषये प्रच्छन्नं दानं प्रकाशद्रव्याणां च प्रकाशम्। यथा च सर्वाभिप्रायसंबर्धकमेनं मन्येत तथा प्रयतितव्यम्।।17।।
अर्थ : प्रेमी को अपनी प्रेमिका के घर वालों को दिखाकर या छिपाकर विभिन्न उपहार देना चाहिए, जैसे- मिट्टी, लकड़ी, कांच तथा मोम आदि के मन्दिर देना चाहिए। तोता, मैना, तीतर, पिंजरे, शंख, सीप, कौड़िया, वीणा, श्रृंगार रखने का समान और तस्वीर लाकर देना चाहिए। रंग, चन्दन, सुपारी, पान, इत्र आदि को अवसर देखकर अपनी प्रेमिका को देना चाहिए।

श्लोक-18. वीक्षणे च प्रच्छत्र्नमर्थयेत् तथा कथायोजनम्।।17।।
अर्थ : प्रेमी को चाहिए कि अपनी प्रेमिका को छिपकर मिलने का अनुरोध करे और उसके साथ ऐसी बाते करें जिससे उसके मन में विश्वास और प्यार बढ़े।

श्लोक-19. प्रच्छत्र्नदानस्य तु कारणमात्मनो गुरुजनाद्भयं ख्यापयेत्। देयस्य चान्येन स्पृहणीयत्वमिति।।18।।
अर्थ : यदि प्रेमिका छिपाकर वस्तु देने का कारण पूछे तो मुझे मां-बाप का डर बताए या दी जाने वाली चीजें लेने के बहाने बनाए तो उसे अपने प्यार का विश्वास दिलाएं।

श्लोक-20. वर्धमानानुरागं चाख्यानके मनः कुर्वतीमन्वर्थाभिः कथाभिश्चित्तहारिणीभिश्च रञ्जयेत्।।19।।
अर्थ : प्रेमी-प्रेमिका का आपसी प्यार बढ़ने लगे और प्रेमिका बाते सुनने की रुचि प्रकट करे तो प्रेमी को मौके के अनुसार खूबसूरत कहानियां सुनाकर उसका मनोरंजन करना चाहिए।

श्लोक-21. विस्मयेषु प्रसह्यामानामिन्द्रजालैः प्रयोगैर्विस्मापयेत्। कलासुकौतुकिनीं तत्कौशलेन गीतप्रियां श्रुतिहरैर्गीतैः। आश्वयुज्यामष्टमीचन्द्रके कौमुद्यामुत्सवेषु यात्रायां ग्रहणे गृहाचारे वा विचित्रैरापीडैः कर्णपत्रभंगैः सिक्थकप्रधानैर्वस्त्राङ्ऴलीयकभूषणदानैश्च। नो चेद्देषकराणि मन्येत।।21।।
अर्थ : यदि प्रेमिका जादू के खेल देखने की इच्छा करती है तो उसे इन्द्रजाल के आश्चर्यजनक खेल दिखाना चाहिए। यदि कलाओं का कौशल देखना चाहती हो तो उसे कलात्मक कौशल दिखाकर खुश करना चाहिए। यदि वह संगीत सुनना चाहती हो तो मधुर संगीत सुनाकर उसका दिल बहलाएं। प्रेमी को चाहिए कि कोजागरी व्रत, बहुला अष्टमी, कौमुदी महोत्सव या ग्रहण के दिन प्रेमिका जब प्रेमी के घर आए तो उसे आपीड, कर्णपत्र भंग, छाप, छल्ला, वस्त्र आदि देकर उसे प्रसन्न करें। लेकिन प्रेमी को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि इन वस्तुओं को देने से उसकी किसी प्रकार की गलतफहमी या बदनामी न हो।

श्लोक-22. अन्यपुरुषविशेषाभिज्ञतया धात्रेयिकास्याः पुरुषप्रवृत्तौ चातुः षष्टिकान्योगान्ग्राहयेत्।।22।।
अर्थ : प्रेमिका की सहेली को चाहिए कि वह उसके प्रेमी की तारीफ करे। उससे कहे कि वह युवक बहुत सुन्दर है और गुणवान है। इस प्रकार प्रेमिका के मन से प्रेमी से मिलने के डर और संकोच को दूर करें और प्रेमी से मिलने के लिए उसे तैयार करें, साथ ही काम संबंधी कलाओं की शिक्षा भी दे।

श्लोक-23. उदारवेपश्च स्वयमुपहनदर्शनश्च स्यात्। भावं च कुर्वतीमिंगिताकारैः सूचयेत्।।23।।
अर्थ : प्रेमी को चाहिए कि वह प्रेमिका के सामने सजधज कर और सुगंधित परफ्यूम लगाकर जाए। प्रेमी जब अपनी प्रेमिका की नजरों के सामने बार-बार जाता है तो उसके हाव-भाव से यह समझ में आ जाता है कि वह मुझसे प्यार करती है या नहीं।

श्लोक-24. युवतयो हि संसृष्टमभीक्ष्णदर्शनं च पुरुषं प्रछमं कामयन्ते। कामयमाना अपि तु नाभियुञ्जत इति प्रायोवादः। इति बालायामुपक्रमाः।।24।।
अर्थ : यह निश्चित है कि ज्यादातर युवतियां अपने परिचितों तथा आसपास रहने वाले युवकों को ज्यादा चाहती हैं लेकिन वे उसे चाहते हुए भी लज्जावश उससे समागम नहीं करती क्योंकि इससे उसके पकड़े जाने का डर रहता है।

श्लोक-25. तानिङ्गिताकारान् वक्ष्यामः।।25।।
अर्थ : वात्स्यायन प्रेमी-प्रेमिका के बारे में बताने के बाद अब प्रेमिका के शारीरिक संकेतों के बारे में बताते हैं।

श्लोक-26. संमुखं तं तु न वीक्षते। वीक्षिता व्रीडां दर्शयति। रुच्यमात्मनोऽङ्गमपदेशेन प्रकाशयति। प्रमत्तं प्रच्छत्र्नं नायकमतिक्रान्तं च वीक्षते।।26।।
अर्थ : प्रेमिका अक्सर अपने प्रेमी को अपना मुख लज्जा और शर्म के कारण नहीं दिखाती है लेकिन हल्की तिरछी नजरों से ही अपने प्रेमी को देख लिया करती है। प्रेमिका अक्सर अपने प्रेमी को किसी न किसी बहाने से अपनी खूबसूरती दिखाती है और ऐसा वह तब करती जब प्रेमी उसकी तरफ ध्यान न दे या उससे दूर हो।

श्लोक-27. पृष्टा च किंचित्सस्मितमव्यक्ताक्षरमनवसितार्थं च मन्दंमन्दमधोमुखी कथायति। तत्समीपे चिरं स्थानमभिनन्दति। दूरे स्खिता पश्यतु मामिति मन्यमाना परिजनं सवदनविकारमाभापते। तं देशं न मुञ्जति।।27।।
अर्थ : प्रेमी जब प्रेमिका से आकर्षित होता है और उससे कुछ पूछता है तो वह हल्की सी मुस्कुराती हुई सिर व पलके झुकाएं हुए धीमी स्वर में इस तरह जवाब देती है जिसका अर्थ समझना मुश्किल होता है। प्रेमिका अक्सर अपने प्रेमी के साथ अधिक बैठे रहना चाहती है। कभी-कभी प्रेमिका अपने प्रेमी को आकर्षित करने तथा दिखाने के लिए अपने छोटी बहन की बाते सुनाने लगती हैं, मुंह बनाकर बाते करने लगती हैं।

श्लोक-28. यत्किंचिद् दृष्टवा विहसितं करोति। तत्र कथामवस्थानार्थमनुबघ्नाति। बालस्याकंगतस्यालिंगनं चुंबनं च करोति। परिचारिकायास्तिलकं च रचयति। परिजनानवष्टभ्य तास्ताश्च लीला दर्शयति।।28।।
अर्थ : प्रेमिका प्रेमी को दिखाने के लिए जिस जगह प्रेमी खड़ा होता है उसी जगह जाकर खड़ी होती है। प्रेमिका अपने प्रेमी को प्यार का एहसास कराने के लिए उसके पास खड़ी होकर कुछ भी देखकर हंसने लगती है। उसके पास खड़े रहने के लिए वे अपने सहेली के साथ ऐसी बाते करेगी जो जल्दी समाप्त न हो। प्रेमी को देखकर वह बच्चे को गोद में लेकर चुंबन करने लगती है, उससे बाते करने लगती है। अपनी सहेली का सहारा लेकर हाव-भाव तथा नाज-नखरे दिखाने लगती है।

श्लोक-29. तन्मित्त्रेषु विश्वासिति। वचनं चैषां बहु मन्यते करोति च। तत्परिचारकैः सह प्रीतिं संकथां द्यूतमिति च करोति। स्वकर्मसु च प्रभविष्णुरुवैतात्र्नियुङ्क्ते। तेषु च नायकसंकथामन्यस्य कथयत्स्ववर्हिता तां श्रृणोति।।29।।
अर्थ : प्रेमिका अपने प्रेमी के दोस्तों की बातों पर विश्वास करती है और उसके बातों को मानती है। उसके घर के नौकरों के साथ अक्सर बाते करती रहती है, प्रेम भरा व्यवहार बर्ताव करती है तथा उनके साथ शतरंज, ताश आदि भी खेलती है। प्रेमिका अपने प्रेमी के नौकरों को मालिक की तरह भी आदेश देती है। अगर वह नौकर उसके प्रेमी की बातें करता है तो प्रेमिका उसकी बातों को ध्यान से सुनती है।

श्लोक-30. धात्रेयिकया चोदिता नायकस्योदवसितं प्रविशति। तामन्तरा कृत्वा तेन सह द्यूतं क्रीडामालापं चायोजयितुमिच्छति। अनलंकृता दर्शनपथं परिहरति। कर्णपत्त्रमङ्गलीयकं स्त्रजं वा तेन याचिता सधीरमेव गात्रादवतार्य सख्या हस्ते ददाति। तेन च दत्तं नित्यं धारयति। अन्यवरसंकथासु विपण्णा भवति। तत्पक्षकैक्ष्च सह न संसृज्यत इति।।30।।
अर्थ : प्रेमिका अपनी सहेली के कहने पर अपने प्रेमी के घर चली जाती है। सहेली को जरिया बनाकर प्रेमी के साथ शतरंज आदि खेलती है तथा प्रेमालाप करती है। प्रेमी के सामने बिना श्रृंगार के नहीं आती। यदि प्रेमी कर्णफूल, अंगूठी या माला मांगता है तो बड़े धीरज के साथ उतारकर सहेली के हाथ में रख देती है। प्रेमी की दी हुई चीजों को हमेशा पहनती है। दूसरे युवकों की बातों से उदास हो जाती है तथा उस सहेली का साथ छोड़ देती है।

श्लोक-31. भवतश्चात्र श्लोक (इस विषय में पुराना श्लोक)-
दृष्ट्वैतान्भावसंयुक्तानाकारानिंगितानि च। कन्यायाः संप्रयोगार्थं तांस्तान्योगान्विचिन्तयेत्।।31।।
अर्थ : इस तरह प्रेमिका अपने हाव-भाव, नाज-नखरों तथा इशारों को देखकर उसके समागम के लिए कोशिश करनी चाहिए।

श्लोक-32. बालक्रीडनकैर्बाला कलाभिर्यौवने स्थिता। वत्सत्ना चापि संग्राह्या विश्वास्यजनसंग्रहात्।।32।।
अर्थ : आचार्य वात्स्यायन ने तीन प्रकार की लड़की के बारे में बताया हैः- पहला बालक्रीडा करने वाली बाला कहलाती है। दूसरा कामाकालाओं से मनुराग रखने वाली तरुणी (युवती) कहलती है। तीसरा वात्सल्य भाव रखने वाली प्रौढ़ कहलाती है। इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को चाहिए कि वे खेल-खिलौनों से बाल लडकी को वश में करें, कामकला के द्वारा युवती को अपने वश में करें और प्रौढ़ा को उसके विश्वासी व्यक्तियों के द्वारा अपने वश में करके अपनी ओर आकर्षित करें।
यहां पर यह जानना बेहद आवश्यक है कि प्रेमी किसी तरह प्रेमिका को अपनी ओर आकर्षित करें और इसके लिए उसे क्या करना चाहिए। प्रेमिका को अपनी ओर आकर्षित करने के तरीके को दो भागों में बांटा गया है- पहला प्रेमी अपनी प्रेमिका की सहेलियों से जान-पहचान बढ़ाकर उससे बाते करें या अच्छे कपड़े, आभूषण एवं अन्य चीजों के द्वारा प्रेमिका को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश करें और मौका मिलने पर प्यार का इजहार करें। दूसरा प्रेमी को अपने प्रेमिका को मनभोवक वस्तु उपहार के रूप में देना चाहिए जिससे प्रेमिका प्रेमी के मन की इच्छा को समझ सकें। ये दोनों ही तरीके मनोवैज्ञानिक हैं और इसके द्वारा प्रेमी-प्रेमिका को एक-दूसरे की भावनाओं को समझने में मदद मिलती है।
प्रेमी को अपनी प्रेमिका से बात करने और अपने प्यार का इजहार करने के रास्तों का चुनाव बड़ी बुद्धिमानी से करना चाहिए। प्रेमिका की जो सहेलियां हो उनसे बाते करते हुए अपनी प्रेमिका के प्रति अधिक प्रेम और विश्वास दिखाएं। प्रेमिका की सहेली को अपना माध्यम बनाते हुए यह निश्चित कर लेना चाहिए कि क्या उसकी सहेली उनके बीच के प्यार को एक करने में उसकी मदद करेगी।
इति श्रीवात्स्यायनीये कामसूत्रे कन्यासम्प्रयुक्त के तृतीयेऽधिकरणे बालोपक्रमा इग्ङिताकारसूचनं च तृतीयोऽध्यायः।।3।
तृतीय अध्याय - बालोपक्रमाः प्रकरण तृतीय अध्याय - बालोपक्रमाः प्रकरण Reviewed by Admin on 11:57 PM Rating: 5

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