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तृतीय अध्याय : भावपरीक्षा प्रकरण

श्लोक (1)- अभियुञ्ञानो योषीतः प्रवृत्तिं परीक्षेत। तया भावः परीक्षतो भवति अभियोगांश्च प्रतिगृह्वीयात्।।


अर्थ- पुरुष जब किसी स्त्री से मिलता-जुलता है तो उसे स्त्री के स्वभाव की और उसके भावों की जानकारी ले लेनी चाहिए क्योंकि भाव ही चेष्टा का काम है।

श्लोक (2)-  मन्त्रमवृण्वानां दृत्यैनां साधयेत्।।

अर्थ- स्त्री और पुरुष के बीच की सलाह न प्रकट करने वाली चालाक दूती को साधना चाहिए।

श्लोक (3)- अप्रतिगृह्याभियोगं पुनरपि संसृज्यमानां द्विधाभूतमानसां विद्यात्। तां क्रमेण साधयेत्।।

अर्थ- जो स्त्री पुरुष के साथ बिना मन के संभोग करती है तो उसे मुश्किल में फंसा हुआ समझना चाहिए और उसको धीरे-धीरे इस मुश्किल से बाहर निकालना चाहिए।

श्लोक (4)- अप्रतिगृह्याभियोगं सविशेषमलंकृता च पुनर्द्दश्येत तथैव तमभिगच्छेश्च विविक्ते बलादग्रहणीयां विद्यात्।।

अर्थ- जो स्त्री पुरुष से नहीं मिलती लेकिन फिर भी पहले से ज्यादा सजती-संवरती है तो पुरुष को उसे उसी तरह से मिलाने की कोशिश करनी चाहिए। पुरुष को उसके इस भाव को जान लेना चाहिए कि उस स्त्री में जबरदस्ती संभोग कराने की प्रवृत्ति है।

श्लोक (5)- बहूनपि विषहतेऽभियोगात्र च चिरेणापि प्रयच्छत्यात्मानं सा शुष्कप्रतिग्राहिणी परिमयविघटनसाध्या।।

अर्थ- जो स्त्री पुरुष से कई बार मिल चुकी हो लेकिन फिर भी संभोग क्रिया करने से मना करती हो पुरुष को उसे नीरस मिलन वाली स्त्री समझना चाहिए। उस स्त्री से संभोग करने के लिए मेलजोल बढ़ाना चाहिए।

श्लोक (6)- मनुष्यजातेश्चित्तानित्यत्वात्।।

अर्थ- पुरुष के मन की वृत्तियां बदलती रहती हैं इसलिए एक बार परिचय टूट जाने पर फिर दुबारा से जोड़ा जा सकता है।

श्लोक (7)- अभियुक्तापि परिहरति, न च संसृज्यते। न च प्रत्याचष्टे। तस्मित्रात्मनि च गौरवाभिमानात्। सातिपरिचयात्कृच्छ्रसाध्या। मर्मज्ञया दूत्या तां साधयेत्।।

अर्थ- बहुत सी स्त्रियों की आदत होती है कि वह पुरुष से कई बार मिलने के बाद अचानक मिलना छोड़ देती हैं। वह न तो पुरुष से संभोग कराती हैं और न ही उसे मना ही करती हैं। वह ऐसा करती हैं तो समझती है कि मैने कितना बड़ा काम किया है। ऐसी स्त्री को या तो ज्यादा मेलजोल के जरिये संभोग करने के लिए तैयार करना चाहिए या फिर चालाक दूती से साधना पड़ता है।

श्लोक (8)- सा चेदभियुज्यमाना पारुष्येण प्रत्यादिशत्युपेक्ष्या।।

अर्थ- जो स्त्री पुरुष से मिलने पर उसे नजरअंदाज करती है या किसी भी बात के पूछने पर उसका सही तरह से जवाब नहीं देती है तो पुरुष को ऐसी स्त्री से मिलना छोड़ देना चाहिए।

श्लोक (9)- परुषयित्वापि तु प्रीतियोजिनीं साधयेत्।।

अर्थ- कुछ स्त्रियां अपनी आदतानुसार पहले गुस्से में बात करती हैं लेकिन बाद में प्यार भी बहुत करती हैं। पुरुष को ऐसी स्त्रियों से संभोग करने के लिए कोशिश करते रहना चाहिए।

श्लोक (10)- कारणात्संस्पर्शनं सहते नाववुध्यते नाम द्विधाभूतमानसा सातत्येन क्षान्तया वा साध्या।।

अर्थ- यदि स्त्री के साथ पुरुष प्राक-क्रीडा़ जैसे आलिंगन या चुंबन आदि करता है लेकिन स्त्री उसके साथ ऐसा बर्ताव करती है जैसे कि वह कोई अंजान व्यक्ति है तो पुरुष को उसे मुश्किल में समझकर सब्र रखकर उसके संभोग करने की प्रतीक्षा करनी चाहिए।

श्लोक (11)- समीपे शयानायाः सुप्तो नाम करमुपरि विन्यसेत्। सापि सुप्तेवोपेक्षेते। जागृती त्वपनुदेद्धयोऽभियोगाकांक्षिणी।।

अर्थ- पुरुष को अपने पास लेटी हुई स्त्री के ऊपर हाथ रख देना चाहिए अगर वह संभोग करने की इच्छा रखती होगी तो वह पुरुष के हाथों को तुरंत ही हटा देती है नहीं तो वह ऐसी पड़ी रहेगी जैसी कि कुछ पता ही न हो।

श्लोक (12)- एतेन पादस्योपरि, पादन्यासो व्याख्यातः।।

अर्थ- सोती हुई स्त्री के ऊपर हाथ रखने के बाद पैर को भी रख देना चाहिए।

श्लोक (13)- तस्मिन्प्रसृते भूयः सुप्तसंश्लेषणमुपक्रमेत्।।

अर्थ- इसके बाद पुरुष को धीरे-धीरे लेटे-लेटे ही हाथ-पैर रखने के बाद स्त्री के साथ आलिंगन भी करना शुरू कर देना चाहिए।

श्लोक (14)- तदसहमानामुत्थितां द्वितीयेऽहनि प्रकृतिवर्तिनीमभियोगार्थिनीं विद्यात्। अदृश्यमानां तु दूतीसाध्याम्।।

अर्थ- यदि स्त्री पुरुष के द्वारा आलिंगन करते ही तुरंत खड़ी हो जाती है तथा दूसरे दिन नाराज सी न लगे तो पुरुष को समझ लेना चाहिए कि वह अब मिलना पसंद करती है। इसलिए पुरुष को उससे मिलते रहना चाहिए। अगर स्त्री संभोग से दूर भागती है तो दूती के द्वारा उसे साधना चाहिए।

श्लोक (15)- चिरमदृष्टापि प्रकृतिस्थैन संसृज्यते कृतलक्षणां तां दर्शिताकारामुपक्रमेत्।।

अर्थ- अगर बहुत दिनों के बाद मिलने भी स्त्री दुबारा मिलना चाहती हो, इशारे करती हो, हावभाव प्रकट करती हो तो ऐसी स्त्री से दुबारा मिलना-जुलना शुरू कर देना चाहिए।

श्लोक (16)- अनभियुक्ताप्याकारयति। विविक्ते चात्मानं दर्शयति। सवेपथुगद्रदं वदति। स्विन्नकरचरणाङलिः स्विन्नमुखी च भवति। शिरः पीडने संवाहने चोर्वोरात्मानं नायके नियोजयति।।

अर्थ- जो स्त्री बिना मिले हुए ही अपने हाव-भाव दिखाती हो, एकांत में अपने शरीर के अंगों को दिखाती हो, बोलते समय जिसकी आवाज में कंपकंपी प्रतीत हो, जिसकी बोली मीठी हो, चेहरा पसीने से भीग जाता हो, पुरुष के हाथ-पैर और सिर को दबाने लगे तो पुरुष को समझ जाना चाहिए कि वह उससे प्रेम करती है।

श्लोक (17)- आतुरासंवाहिका चैकेन हस्तेन संवाहयन्तीद्वितीयेन बाहुना स्पर्शमावेदयति श्लेषपति च। विस्मतभावा।।

अर्थ- जिस समय स्त्री के अंदर काम-उत्तेजना पैदा होती है तो उस समय वह अपने पैर को दबाने लगती है, दूसरे हाथ से पुरुष को अपने शरीर को छूने का इशारा करती है तथा पुरुष के स्पर्श के बिना ही आर्श्चचकित होती हुई दूसरे हाथ से भी पैर को दबाने लगती है।

श्लोक (18)- निद्रान्धा वा परिस्पृश्योरुभ्यां बाहुभ्यामपि तिष्ठति। अलकैकदेशमूर्वेरुपरि पातयति। ऊरुमूलसंवाहने नियुक्ता न प्रतिलोमयति। तत्रैव हस्तमेकमविचलं व्यस्पति। अंगसंदंशेन च पीड़ितं चिरादपन-यति।।

अर्थ- स्त्री नींद आने का बहाना करके दोनों हाथों से पुरुष का स्पर्श करके दोनों घुटनों के बल बैठती है और माथे को घुटनों पर रखती है। पुरुष के पैर को दबाती हुई अपने हाथों को पुरुष की जांघों की ओर बढ़ाती है, नीचे की तरफ लेकर नहीं आती तथा एक हाथ को उसकी जांघ के जोड़ में रखे रहती है। जिस समय पुरुष अपनी जांघों पर रखे हुए उसके हाथ को जोर से दबाती है तभी वह अपने हाथ को हटाती है।

श्लोक (19)- प्रतिगृह्यौवं नायकाभियोगान्पुनर्द्वितीयेऽहनि संवाहनायोपगच्छति।।

अर्थ- इस तरह पहले दिन वह स्त्री पुरुष से मिलकर दूसरे दिन फिर से उसका पैर दबाने के लिए आ जाती है।

श्लोक (20)- नात्यर्थ संसृज्यते। न च परिहरित।।

अर्थ- स्त्री के बहुत ज्यादा संजीदा होने की वजह से वह अपने भावों को छुपाकर ही अपनी प्रवृत्ति को दिखाती है। वह न तो स्वयं ही ज्यादा सम्पर्क स्थापित करती है और न ही पुरुष का ध्यान करती है।

श्लोक (21)- विविक्ते भावं दर्शयति निष्कारणं चागूढमन्यत्र प्रच्छन्नप्रदेशात्।।

अर्थ- स्त्री यह समझती है कि दूसरा कोई व्यक्ति देख तो रहा ही नहीं है इसलिए वह एकांत में अपने भावों को प्रदर्शन करती है तथा बाकी सारी जगह प्रच्छन्न भाव प्रकट करती है।

श्लोक (22)- संनिकृष्टपरिचारकोपभोग्या सा चेदाकारितापि तथैव स्यात् सा मर्मज्ञया प्रस्या साध्वा।।

अर्थ- जो स्त्री पुरुष के पास रहकर, सेवा करके भोग करने लायक हो उसको अगर इशारे भी किये जाए वह फिर भी वैसी ही रहेगी। उसे दूती की मदद से ही साधी जा सकती है।

श्लोक (23)- व्यावर्तमाना तु तर्कणीयेति भावपरीक्षा।।

अर्थ- जो स्त्री इशारे भी करे लेकिन फिर भी संभोग करने से पीछे हटे तो सोचना चाहिए कि वह अपने मन से यह बात कह रही है या सिर्फ नखरे दिखाने के लिए ही बोल रही है।

श्लोक (24)- भवन्ति चात्र श्लोकाः-

आदौ परिचयं कुर्योत्तत्श्च परिभाषणम्। परिभाषणसंमिश्रं मिथश्चाकार-वेदनम्।।

अर्थ- सबसे पहले स्त्री से जान-पहचान कर लेनी चाहिए। उसके बाद बातों को आगे बढ़ाना चाहिए। इस बातचीत में ही एक-दूसरे के भावों का आदान-प्रदान कर लेना चाहिए।

श्लोक (25)- प्रत्युत्तरेण पश्येच्चेदाकारस्य परिग्रहम्। ततोऽभियुञ्ञीत नरः स्त्रियं विगतसाध्वसः।।

अर्थ- स्त्री के इशारा करने पर अगर उसका जवाब पुरुष को मिल जाता है तो उसे बिना किसी डर के स्त्री के साथ संभोग क्रिया करने में लीन हो जाना चाहिए।

श्लोक (26)- आकारेणात्मनो भावं या नारी प्राक्प्रयोजयेत्। क्षिप्रमेवाभियोज्या सा प्रथमे त्वेव दर्शने।।

अर्थ- जो स्त्री पुरुष को इशारे करने के साथ ही अपने मन के भावों को भी जोड़ देती है ऐसी स्त्रियां पहली बार की मुलाकात में ही संभोग करने के लिए तैयार हो जाती है।

श्लोक (27)- श्लक्ष्णमाकारिता या तु दर्शयेत्स्फुटमुत्तरम्। सापि तत्क्षणसिद्धेति विज्ञेया रतिलालसा।।

अर्थ- किसी स्त्री को गुप्त संकेत दिए जाए और वह साफ जवाब दें तो समझ लेना चाहिए कि वह स्त्री संभोग करना चाहती है।

श्लोक (28)- धीरायामप्रगल्भायां परीक्षिण्यां च योषिति। एष सूक्ष्मो विधि प्रोक्तः सिद्धा एवं स्फुटं स्त्रियः।।

अर्थ- जो स्त्री स्वभाव से ही शर्मीली हो, उसके अंदर किसी किस्म की चालाकी न हो और पुरुष की परीक्षा करती हो तो ऐसी स्त्रियों के लिए सूक्ष्म विधि बताई गई है क्योंकि यह तो साफ है कि ऐसी स्त्री कभी न कभी संभोग जरूर करवाएगी।

जानकारी-

महार्षि वातस्यायन ने इस प्रकरण में ऐसी स्त्रियों के मन के भावों की परीक्षा करने के बारे में बताया है जिससे कि पुरुष संभोग करना चाहता है, उसे अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करता है, उससे दोस्ती बढ़ाना चाहता है लेकिन शर्मीले स्वभाव के कारण वह अपने मन के विचारों को जल्दी पुरुष पर प्रकट नहीं करती, उसे अपने साथ संभोग कराने का अवसर भी नहीं देती।

इसमें यह बताया गया है कि बहुत सी स्त्रियां कुछ ज्यादा ही शर्मीले स्वभाव की होती हैं। वह पुरुष से मिलती है, उसके साथ चुंबन और आलिंगन भी करती हैं लेकिन पुरुष द्वारा संभोग करने के लिए कहने पर टाल-मटोल करती रहती हैं। महर्षि वात्स्यायन के मुताबिक ऐसी स्त्रियों को पहले जान-पहचान बढ़ाकर मिलना-जुलना चाहिए। अच्छी तरह से जान-पहचान होने के बाद वह स्वयं ही पुरुष के साथ संभोग करने के लिए तैयार हो जाती है।

श्लोक- इति श्रीवात्स्यायनीये कामसूत्रे पारदारिके पञ्ञमेऽधिरणे भावपरीक्षा तृतीयोऽध्यायः।
तृतीय अध्याय : भावपरीक्षा प्रकरण तृतीय अध्याय : भावपरीक्षा प्रकरण Reviewed by Admin on 10:48 AM Rating: 5

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